व्यंग्य।।चार दिन की चाँदनी!।।

  

व्यंग्य

चार दिन की चाँदनी!


         थाने में नए थानेदार साहब के पद ग्रहण (आमद) की खबर जैसे ही महकमे के मुलाजिमों को लगी सभी सजग और सतर्क हो गए वर्दियों को चमकाया जाने लगा। हवलदार पुण्डरीक लादे बोले- अरे ! भाई रंगनाथ रत्नाकर जरा इधर तो आइए। रंगनाथ ने कहा- वहीं से बोल दीजिए बड़े ही अनुशासित लग रहे हो आज प्रधान मुंशी लादे साहब,रंगनाथ ने कहा इसकी वज़ह क्या है?

    पुण्डरीक लादे ने कहा- अरे!भाई जरा निकट तो आइए कुछ खास खबर साझा करनी है। रंगनाथ रत्नाकर थाने के सबसे पुराने हवलदार थे कोई आठ दस साल से इसी थाने में जमे हुए थे अनुभव से सराबोर लिफाफे का वज़न दूर से ही भांपने में माहिर,धाराओं की धार का काबिलेतारीफ ज्ञान,धाराओं में बहा भी दें और बचा भी लें!उनके साथ के कितने ही साथी स्थान बदलते रहे लेकिन रंगनाथ का स्थानांतरण नहीं हो सका, वजह? विभागीय अनुभव और वह भी साहब के मुताबिक़!        


          नियम तो यह बताया जाता है एक जगह तीन वर्ष से अधिक कोई पुलिसकर्मी रह नहीं सकता लेकिन रंगनाथ तो रंगनाथ ठहरे! उनकी रंगबाजी कम नही हो पायी। हाँ पुण्डरीक लादे कहो क्या कह रहे थे, रंगनाथ बोले,हवलदार लादे ने अपनी तोंद से बारबार नीचे सरकती बेल्ट को दुरुस्त करने का जबरन प्रयास किया लेकिन वही "ढाक के तीन पात"बिल्कुल किसी सरकारी बाबू के ईमान की तरह! सुना है नए साहब सीधे पुलिस मुख्यालय से थानेदार पद पर स्थानांतरित हुए हैं पहले खुफिया विंग में रह आए हैं बड़े नॉलेज वाले बताए जाते हैं।और हां इनके दूर के रिश्तेदार गृह मंत्रालय में उच्च पद पर भी हैं,काफी ऊंची पकड़ है साहब की,सुना है बेहद! ईमानदार और तेज तर्रार भी हैं साहब।

    अरे!छोड़ो तुम भी,इनसे पहले कितने आये और गए सभी ने सशरीर थाने की टेबल के नीचे/ऊपर बहती गंगा में श्रद्धा के साथ गोते लगाए हैं कौन है ऐसा जो वैतरणी पार ना किया हो। हाँ दिव्यप्रभा रावल साहब की कह नहीं सकते उन्होंने गंगा नहाई या नहीं! लेकिन वे मंत्री जी की छाती पर चढ़ गए थे एक गम्भीर मामले की तहकीकात में,मंत्रीजी के बेटे को जेल कराने के मुहाने पर ले ही आये थे लेकिन अफसोस! सिस्टम मंत्री जी की तरफ़दारी कर बैठा इससे आगे कुछ कर पाते उससे पहले तबादला हो गया वैसे काफी ब्रेव अफसर थे रावल साहब। लेकिन ज्यादा ईमानदार थाने या सिस्टम में फिट बैठने हेतु पात्र ही नहीं होते उनकी पात्रता उपयोगी नहीं होती। वे समाज के सच्चे चौकीदार तो हो सकते हैं लेकिन फर्जी चौकीदारों के चौकीदार नहीं! और इसी विशेष गुण के बदौलत भेज दिए गए रावल साहब पुलिस ट्रेनिंग स्कूल अब बांटों ज्ञान!

  चलो! इन्हें भी देख लेगें हज्जाम के सामने बाल और दाई के सामने पेट छुपता कहां है। ये कोई अलग मिट्टी के थोड़े ही बने हैं सिस्टम के मैनेजमेंट से अलग जाने की कुव्वत हर किसी में नहीं होती हवा के खिलाफ खड़ा होना सामान्य थोड़े ही है।गलत को गलत कहने का सिद्धांत आधुनिक प्रजातंत्र में विलुप्तीकरण की ओर जा रहा है।

चार दिन की चांदनी फेर अंधेरा पाख,तुम्हें तो पता ही है। हवलदार लादे ने फिर कहा- कुमार साहब को ही ले लो उन्हें तो सीधे एंटी करप्शन से भेजा गया था यहाँ,थाना प्रभारी बनाकर ताकि सिस्टम में व्याप्त करप्शन घट सके,ये खेल पूरी तरह खत्म तो हो ही नहीं सकता! कुछ कम तो हो ही जाए लगाम लग सके,कुछ समय सब ठीक रहा फिर रम गए पुराने ही माहौल में सब उन्हें भी सफेदपोश समाज के इशारे पर चलना पड़ा और बहने लगे जलधारा के साथ,भला हो मीडिया कर्मी का जिन्होंने एंटी करप्शन वाले साहब का स्टिंग करके सिद्ध कर दिया एंटी करप्शन वाले साहब भी करप्शन के फेर में फंस चुके हैं। अरे!सुनो जिन्हें मौका नहीं मिलता वही ईमानदार! मौका मिलते ही मालदार!अब मुझसे ना खुलवाओ,बहुत कम ही होते हैं जो बहती गंगा में हाथ ना धोएं चलो इन्हें भी देखते हैं।भैया रंगनाथ जी,अरे! भैया हमसे तुमसे क्या छुपा है थाने के दैनिक बहीखातों,मासिक बहीखातों का हिसाब,अरे! चुप करो अपने ही दोनों घुटने खोलने पर आमादा हो,जरा ज्यादा सच मत कहो थोड़ी सी लाज करो,भाई रंगनाथ,दोनों हवलदार चर्चा कर ही रहे थे!

       इसी बीच बाहर चमचमाती सरकारी सफेद जिप्सी रुकी एक भद्र पुरुष उतरे सभी कार्मिक सावधान की मुद्रा में खड़े हो गए सलाम साहब,जयहिन्द साहब सभी ने सेल्यूट की। कितना छरहरा कितना ओजस्वी व्यक्तित्व था नए थानेदार सुजान सिंह का उम्र कोई चालीस के आसपास रही होगी। सभी सहायक कर्मचारियों ने साहब का जोरदार पुष्पहारों से स्वागत किया। साहब ने फरमान सुनाया सभी साथी कर्मी शाम को रॉलकाल में थाना परिसर में मिलें। और हाँ नफरी में सबसे काबिल साथियों की सूची मुझे दो घण्टे पहले पहुँचा दी जाए।

     नियत समय पर सभी कार्मिक परिसर में उपस्थित हुए परिचय की औपचारिकता पूर्ण हुई काबिल लोगों की लिस्ट साहब के हाथ में ही थी। साहब ने कहा रंगनाथ जी, 

लादे जी(दोनों मुंशी) कैसे हो!

दोनों ने एक साथ कहा-जी साहब ठीक हैं!

और सभी साथी कैसे हैं कोई समस्या?

सभी ने एक स्वर में उत्तर दिया-नहीं साहब,

फिर दोनों मुंशियों को आदेश दिया कल सुबह तक सभी शिकायतों की प्रगति रिपोर्ट चौकीवार और थाना क्षेत्र के असमाजिक अपराधी तत्वों की सूची मुझे चाहिए। साहब को सभी तथ्यों से अवगत करा दिया गया नए साहब मुंशी की बुद्धि कौशल की शरण में चले गए मानो मुरीद हो गए! ठीक वैसे ही जैसे मंदिर की चौखट पर श्रद्धालु माथा टेक देते हैं समर्पण भाव से।

     साहबों के आने जाने से फर्क नहीं पड़ने वाला अगर तबादला करना ही है तो ऐसी विकृत मानसिकता का करना होगा जो सिस्टम में बैठकर सिस्टम को ही घुन लगा रहे हैं क्या इनकी संदिग्ध गतिविधियां विभाग को पता नहीं होती?तबादला उनका भी होना चाहिए जो सिस्टम में बैठकर सिस्टम का ही मजाक बनाते हैं नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं और अपने साथी कर्मियों को चिढ़ाते हुए साहब की कृपा पर पलते हैं।ठीक वैसे ही जैसे नेता आम जनता से वोट लेकर उसे पूरे पांच साल चिढ़ाता है आगे पीछे घुमाता है।ऐसे में साहब का विवेक,हुनर काम आ सकेगा समाज के,जब उनका पथ प्रदर्शक स्वयं उनका मातहत हो

और वही मातहत जो अपनी योग्यता के बल पर नहीं टिका बल्कि अफसरों की कृपा के बल पर टिका रहता है ये समस्या सिर्फ एक विभाग की नहीं हैं सभी में रंगनाथ और लादे जैसे मुलाजिम बैठे हैं विचार करिए इन दो पाटों के बीच पिसेगा कौन?

आम जनमानस और कौन?नए साहब भी एडजस्ट हो गए ठीक वैसे ही जैसे चीनी पानी में एडजस्ट हो जाती हैं पूर्ण आत्मीयता के साथ!

कहावत सच सिद्ध हुई।

"चार दिन की चाँदनी फेर अंधेरा पाख"

       

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२७.०६.२०२२ ०७.४६ पूर्वाह्न


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