व्यंग्य ।।कफ़न ऑनलाइन मिल गया!।।

 

।।व्यंग्य।।

कफ़न ऑनलाइन मिल गया !


    ऑनलाइन सेल्स काउंटर पर बैठी तान्या ने आंखें मींजते हुए फोन उठाया,कान में एक मीठी सी आवाज़ आयी हैलो सुनिए! उधर से कोई मॉर्डन लेडी बोल रही थी, शायद! उसे ऑफलाइन बाजार से परहेज था ठीक वैसे ही जैसे लव मैरिज किये हुई मॉर्डन यंग गर्ल को अरेंज मैरिज से होता है!

      तान्या ने कहा- गुड नाइट मेम,बताइए। मॉर्डन लेडी-जी मेरे फादर इन लॉ की अभी अभी डेथ हो गयी है क्या आप उनके लिए एक मॉर्डन कफ़न बुक कर लेगीं साथ ही जलाने का मैटेरियल भी! क्योंकि वे भी बड़े ही चाव से ऑनलाइन शॉपिंग का मजा लेते थे कारण, मदर इन लॉ बताती थीं ये यंग गर्ल्स की स्वीट वॉइस के दीवाने थे।

    तान्या बोली-क्यों नहीं, हमारी सर्विसेज के अंतर्गत ग्राहक की प्रत्येक माँग पर विशेष ध्यान दिया जाता है आप ऑर्डर कीजिये मेम।

मॉर्डन लेडी-तो सुनिए! गोबर के कंडे भी भेजिए,हमें फर्क नहीं पड़ता कंडे किसी भी पद्दति से बनाए गए हों।भैंस का गोबर हो या अन्य किसी का लेकिन पैकिंग अट्रैक्टिव (आकर्षक) होनी चाहिए बिल्कुल ब्यूटीपार्लर से निकली मॉर्डन ब्राइड (दुल्हन) की तरह !

        तान्या- जी मेडम,यही तो खासियत है हम ऑनलाइन मार्केट की,मैटेरियल ऑफलाइन मार्केट से ही उठाते हैं रद्दी के भाव में और बेंच देते हैं हाई प्राइस पर बिल्कुल वैसे ही जैसे नेता लोग टिकट बेंच देते हैं,सरकारी सम्पत्ति बेंच देते हैं,और ईमान भी बेंच देते हैं बस कीमत ठीक मिले। इधर फोन पर बात चल ही रही थी इतने में पीछे से आवाज आयी रोने धोने की कोई जरूरत नहीं। हम मॉर्डन जेनरेशन(दौर) के मॉर्डन प्यूपिल(लोग) हैं मरने पर रोना / धोना, चिल्लाना ये एजओल्ड(प्राचीन) दौर की बात हो गयी।और हां इन्हें भी सोने दो डेडबॉडी की तरफ इशारा करते हुए सुपुत्र ने कहा,हम लोग भी सो लेते हैं। सुबह उठते ही चार छः लोग ऑनलाईन बुक कराने पड़ेंगे इन्हें जलाने में सहयोग करने हेतु अभी बहुत सारा काम पेंडिंग (अधरझूल/लंबित) है। हमारे फ्लैट के पड़ोसी और नीचे की मार्केट के व्यापारी तो आएंगे नहीं हम कब गए हैं उनकी दुकानों पर कुछ खरीदने और पड़ोसियों के यहाँ ! हमारे पड़ोसी कौन हैं,कहाँ के हैं,हमें खुद ही नहीं पता वे भी मस्त अपने आप में और हम भी मस्त अपनी दुनियां में !

         तभी उसकी नजर फोन पर चिपकी जानू (पत्नी)पर पड़ी। मॉर्डन लेडी का पति-अरे डार्लिग किससे फोन पर बातें कर रही हो। 

मॉर्डन लेडी-किसी से नहीं बस इनके लिए ऑनलाइन कफ़न बुक करा रही हूँ।

मॉर्डन लेडी का पति- नीचे बगल में "जाने" साहब की दुकान से ही खरीद लेगें।

मॉर्डन लेडी-उनसे संपर्क किया था लेकिन उन्होंने कहा चाय,दूध,टोस्ट,कोल्डड्रिंक,ब्रा,पैंटीज,और यहां तक कह गए परिवार नियोजन के संसाधन सब ऑनलाईन मंगाती हो मेडम जी और बच्चों के कपड़े भी,तो ये कफ़न भी ऑनलाइन मंगा लीजिए।इतना कह कर भिन्नाते हुए फोन काट दिए थे "जाने" साहब!

ठीक है ऑनलाईन बुक कर दीजिए।

कंधा देने के लिए ऑनलाइन आदमी भी!

मॉर्डन लेडी-लेकिन कफ़न टेरीकॉट का काले रंग का उपलब्ध है,सफेद तो लोकसभा और विधानसभा वाले ले गए। क्या करूँ जल्दी बताइये लाइन पर हूँ पत्नी जी बोलीं।

पति-लोकसभा विधानसभा वाले क्यों?

       अरे!सुनिए किसी से कहना नहीं कल नेतानी आंटी कह रहीं थी अगर! कल ऑनलाइन मार्केट के चक्कर में ऑफलाइन मार्केट वाले खुदकुशी करेगें तो नेताजी घड़ियाली आंसू बहाते हुए सरकारी कफ़न उड़ाने जायेगें ही उन्हें जताना तो पड़ेगा ही मीडिया और पब्लिक को,अभी भी डेमोक्रेसी(लोकशाही) जिंदा है।और शेष अपने विपक्षियों या दलबदलुओं या जो सड़कों पर प्रदर्शन कर रहें है उन्हें भी उड़ाना ही पड़ेगा इनमें से भी कुछ तो ऊपर जाएंगे ही ! इसलिए स्टॉक पर फोकस है नेताओं का,अगला इलेक्शन आने को हैं।

       पति-डार्लिग! टाइम वेस्ट(बर्बाद) मत करो जो उपलब्ध हो वही बुक करा दो डैडी को क्या पता कफ़न सफेद है या काला, वैसे वे कौनसे दिल के सफेद थे !

तान्या-जी मेडम बताइये,बुक करूँ या नहीं !

किसी दूसरे कस्टमर का कॉल आ रहा है।

मॉर्डन लेडी-जी क्यों नहीं!

तभी तान्या ने दूसरा फोन उठाया

जी मैं तान्या-ऑनलाइन सेल्स काऊंटर से

उधर से किसी युवती की सुरीली आवाज आई

मेम मेरा आर्डर बुक कीजिये।

तान्या-बोलिये जी,जल्दी,दूसरे कस्टमर को होल्ड किया हुआ है।

युवती-लिपस्टिक,नेलपॉलिश,फेशवॉश,खट्टा चूरन(काला वाला)दो किलो चीनी,दही,और आधा किलो खट्टे कच्चे आम बुक कीजिएगा।(सड़क से आवाज आ रही थी ठेल वाले की,कच्चे आम ले लो,कच्चे आम ले लो सस्ती कीमत पर)

     तान्या ने आर्डर बुक कर लिया,ग्राहक ने रेट पर कोई बहस नहीं की सोचा होगा शान में बट्टा लग जायेगा लेकिन यही ग्राहक जब ऑफलाइन बाजार में होते हैं तब देखिए इनके नखरे!रेट बहुत ज्यादा है लूट मचा रखी हैं,मिर्च पावडर आंखों में झोंक दीजिए आदि आदि साथ ही विभिन्न उपमान! एव विशेषणों की बौछार हो जाती है ऑफलाइन बिक्रेता पर।ऑफलाइन वर्सेस ऑनलाइन की जंग क्या गुल खिलाएगी भविष्य के गर्भ में है।

          लेकिन जब बरसात होती है या आंधी आती है तब इन्हें मेकअप / वस्त्र खराब होने का भय सताता है तब आ टपकते हैं ऑफलाइन मार्केट की मरणासन्न चौखटों की ओर !अनाधिकृत घुसपैठ करते हुए शरणार्थी की तरह! दुकानदारों की छत्रछाया में,तब इन्हें (ग्राहकों) सोचना चाहिए अरे! हम तो मॉर्डन हैं,नहीं नहीं!ऑफलाइन दुकान वालों के यहाँ बिल्कुल नहीं! तब क्यों नहीं छुपते ऑनलाइन वालों की गोद में,उनकी छतों के नीचे! 

(सर्वाधिकार सुरक्षित)

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२९.०६.२०२२ ११.१७ पूर्वाह्न


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