कविता-💐देखो मेरे साथ💐

 

कविता

💐देखो मेरे साथ💐


देखो मेरे साथ खड़े हो,

श्यामल बादल।

देखो मेरे साथ खड़े हो,

चिड़ियों का दल।

देखो प्रकृति का खेल,

नदी का कलकल।

देखो मेरे साथ खड़े हो,

झरने,पर्बत,अनुपम फल।


देखो मेरे साथ खड़े हो,

रंग बिरंगे पुष्प रूप के न्यारे।

देखो मेरे साथ खड़े हो,

नील गगन के अगणित तारे।

कितना दिया प्रकृति ने देखो,

अपना अपना दिया लिया भी देखो।

देखो देखो दोहन दमन किया जो हमने,

देखो क्या क्या किया प्रकृति संग सबने।


बहता समीर कहता शीतलता दे ले,

मेरी सुन कुछ अपने मन की कह ले,

बतियाता हूँ तुझसे मानव सुन कान लगा,

अपने अंदर के द्वंद हटा निज शक्ति जगा।

कह दे निज बातें सब अपनी दर्द व्यथाएं।

चलो सतत लेकर प्रयोजन विजय ध्वजाएं,


नदियों के तट के निकट बैठ,

बहते जल के सन्निकट बैठ।

वह कहता तू चल रुकना मत,

उठ चल अपना नव मार्ग देख।

हैं पाट नदी के विलग विलग,

पर उनका अनुपम प्रेम देख।


जा बैठ पास पीपल के चल

पंक्षी करते कलरव पल पल,

वह देता सबको स्वच्छ हवा

तू देता क्या? हे मनुज बता।

कर तू भी कुछ हो स्वच्छ हवा,

हो रोग मुक्त अपनी वसुधा।


धरती के संग तादात्म्य बिठा,

सहती,रहती सब भार उठा।

चल तू भी कुछ सह भार मनुज,

कर सहन सहनशक्ति दिख ला।

थोड़ा सा सिर पर बोझ बढ़ा,

क्या सोच रहा नर खड़ा खड़ा।


जा मनुज अचल के पास,

देता वह सन्देश खास।

कहता भय से विचलित मत होना,

हो वक्त कठिन धीरज मत खोना।

जा देख मनुज उसकी स्थिरता,

विपरीत काल में सदा धैर्यरत रहता।


शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१८.०७.२०२२ ०७.०५ पूर्वाह्न





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