कविता💐अधखिले पुष्प !💐

 
कविता

अधखिले पुष्प !


उदास क्यूँ हतास क्यूँ ?

बताता चल निराश क्यूँ ?

अधखिले पुष्प सा जीवन !

उजड़ा उजड़ा सा उपवन !

अपने अंतर में ताक झांक,

निर्णय कर खुद को जांच,

कटक भय की पास क्यूँ ?

बताता चल निराश क्यूँ ?


स्वयं समझ हुई क्या चूक,

हड्डियों में शक्ति फूँक फूँक।

परख निरख स्वयं का संबल,

क्यों शक्ति प्रधान बना निर्बल।

कर प्रहार सटीक लक्ष्य पर,

हे मनुज जाग उठ प्रहार कर।

रुकी रुकी डरी डरी सांस क्यूँ ?

बताता चल निराश क्यूँ ?


कुछ न कुछ तो खास है,

जिंदगी एक आश है।

हारना ना भूल कर,

मिलें भी मार्ग शूल कर।

गिरा गिरा झुका झुका,

डरा डरा रुका रुका।

सामर्थ्य में ये ह्रास क्यूँ ?

बताता चल निराश क्यूँ ?


स्वर नहीं वाणी नहीं, 

सामर्थ्य निज जानी नहीं।

मुख से हंसी भी हट गयी,

कहीं दूर जा सिमट गयी।

दिल दिमाग दूर दूर,

उमंग जोश चूर चूर।

इस जिंदगी का नाश क्यूँ,

अज्ञात भय ये पास क्यूँ ?

बताता चल निराश क्यूँ ?


किसलिए क्यों घुट रहे, 

यूँ हीं प्रतिक्षण मिट रहे। 

किसलिए ये भय बना,

क्यों रह रहा तू अनमना।

जीत "भय" लेकर शपथ, 

कर स्वयं प्रशस्त पथ।

त्याग ये उदासियाँ, 

छोड़ ये उबासियाँ।

मार्ग में ये फाँस क्यूँ ?

बताता चल निराश क्यूँ ?


कौन जिम्मेदार है ? 

क्यों उठ रहा ग़ुबार है ?

सामर्थ्य है बहुत सुनो,

तुम विशेष बहुत सुनो।

इस तरह ना सिर धुनो,

मार्ग अपना स्वयं चुनो।

भय हटा रह डटा,

तू मनुज महान है। 

भय द्वंद आसपास क्यूँ ?

बताता चल निराश क्यूँ ?


सर्वाधिकार सुरक्षित

  💐रचनाकार💐

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२३.०७.२०२२ ०८.२१ पूर्वाह्न


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !