कविता-उपहार में प्रहार !.

 

कविता

उपहार में प्रहार !


हे मित्र वन्धु तुम क्या क्या दोगे।

कभी कुछ मान,

कुछ नेह और उद्गार।

कभी कुछ रिश्ते,

कुछ नाते और व्यव्हार।

कभी कभी झोलीभर,

तिरस्कार भी दोगे।

हे मित्र वन्धु तुम क्या क्या दोगे।


अपने हो तो सब कुछ,

है स्वीकार हमें।

पीठ में छुरा भी !

उपहार भी प्रहार भी।

असहनीय वेदना,

दुत्कार भी दुलार भी।

कभी कभी अनूठे प्रेम का,

पुरस्कार भी दोगे।

हे मित्र वन्धु तुम क्या क्या दोगे।


कठिन समय पर,

संचित अधरों पर मुस्कान।

अनुचित प्रश्न का,

समुचित उत्तर मौन महान।

बनाबटी सत्कार,

पुष्प से सज्जित हार।

मुख सम्मुख वाह वाह !

पूरित कर दोगे।

खंजर में फिर तेज धार,

छुपकर रख लोगे !

हे मित्र वन्धु तुम क्या क्या दोगे।


जीवन या रणक्षेत्र,

कदम से कदम मिलें।

समय के भीषण तापों में,

सुवासित पुष्प खिलें।

तब ही है सम्पूर्ण मित्रता,

इतना तो ज्ञान रहे।

है अपनी भूमि महान,

जरा सा भान रहे।

स्वार्थवश निज हित,

छल का उपहार भी दोगे !

हे मित्र वन्धु तुम क्या क्या दोगे।


💐सर्वाधिकार सुरक्षित💐

रचनाकार

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२५.०७.२०२२ ०७.४३ पूर्वाह्न







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