शेर-ओ-शायरी ।।इक नज़र।।

 

शेर-ओ-शायरी

💐इक नज़र💐


एक रास्ता इक नज़र,ऐसी भी रहनी चाहिए।

दुश्मनी काफूर हो,तब सामने तो आ सकें।


फ़क़त दो वक़्त की,भूख भी क्या चीज है।

रोज बदले शामियाने,बस इसी के वास्ते।


बाज़ार में बेआबरू,होती रही इंसानियत।

आंख में पानी नहीं,फिर कौन जिम्मेदार है।


वक़्त भी ख़िलाफ़ हो,बयार भी ख़िलाफ़ हो।

तब आदमी बना रहूँ,बस इतनी रहमत चाहिए।


मेरा गिरेबान मुझसे ही,पूछ बैठा इक सवाल।

दाग़ हैं इस ओर साहब,नजर कुछ दौड़ाइए।


अरे!साहब इतनी,गुस्ताख़ी ना कीजिएगा।

अपनी ओर देखो,नज़रअन्दाज़ ना कीजिएगा।


जिंदगी तू बेवफ़ा है,इश्क़ भी सब बेवफ़ा।

साथ तो तू दे ना पाई,सुकून थोड़ा बख़्स दे।


रोज होती कम उमर,मंजिल नहीं आई नज़र।

आदमी धुँआ धुँआ,जल रहा है बेख़बर।


दाग़ उनके गिरेबाँ पर,खूब दिखते हैं तुम्हें।

आइए कुछ देख लो,दाग़ "अपने"आप भी।


जिंदगी दिलफेंक महबूबा है,पता तो है तुम्हें।

रोज बदले हमसफ़र,भूख पर मिटती नहीं।


हक़ीक़त में नीयत अब,नेक नीयत ना रही,

यह दिखाबे का हुनर,आप में भी आ गया।


कदम दर कदम,दम घट रही मेरे अजीज,

क्या पता किस वक़्त,इसकी शाम हो जाए।


आशिक़ी दौलत से गरूर से,क्यों करते हो।

इंसान से भी कीजिए,कंधे इन्हीं के चाहिए।


💐सर्वाधिकार सुरक्षित💐

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

३०.०७.२०२२ ०१.१५ अपराह्न



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