कविता-मेघा बरसत सावन आयौ.

 

कविता

मेघा बरसत सावन आयौ

💐💐💐💐💐

देख सखी फिर सावन आयौ, 

मम ह्रदय जलै पल पल। 

पिय की पाती ना मिली,

मछली सी रहूँ बिन जल। 

ना खत न संदेशौ पायौ,

देख सखी फिर सावन आयौ।


श्याम वर्ण मेघा बरसत, 

देख देख मम नैना तरसत।

अँखियाँ मग जोहें दिवस दिवस,

रतियाँ नित खोएं तरस तरस।

निंदिया बैरन आबत न सखी

ना खुद आए ना पत्र पठायौ।

देख सखी फिर सावन आयौ।


पिया गए परदेश,

नहीं सुध ली सखि मेरी।

गुजरै तड़पत रैन,

कटति नहिं रात अंधेरी।

बदन जलै घनघोर मेह में,

जैसे तपती जेठ दुपैरी।

कब झूलूँगी पिय संग झूला,

सांझ भयी पर दरश न पायौ।

देख सखी फिर सावन आयौ।


उठत हिलोर सुनूँ जब कजरी,

ऊपर से घन बदन जरावै।

रोज खिजाबत काली बदरी,

बूंदें करत विनोद रिझावै।

सबके साजन आत दिखें,

जलै ह्रदय जब साथ दिखें।

खूब सखी बिननें तरसायौ,

देख सखी फिर सावन आयौ।


खत भी कुछ आया नहीं,

गए बहुत दिन बीत।

सखियां झूलत बाग में,

गूँज उठे स्वर गीत।

पंक्षी भी सन्देश न लायौ,

देख सखी फिर सावन आयौ।


युगल मोर मोय देख चिढ़ावत,

निरख निरख मौकों मुस्कावत।

कहता सारस सुन सारसनी,

देख घुमड़ प्रिय बादल आवत।

सखियों के साजन घर आये,

मेरौ साजन अबहूँ ना आयौ।

देख सखी फिर सावन आयौ।


वृक्ष बेल नूतन रंग लाए,

हरियाली नत कतई सुहाए।

पंक्षी नाँचें कोयल गाए,

दादुर मेढ़क उछलत चिल्लाए।

अंगना तक आवत कहत धीरज धर,

तेरा साजन आवेगा मत सखि जर।

और नहीं मुख कमल जरावौ,

देख सखी फिर सावन आयौ।


नजर आए सजन आवत,

ह्रदय प्रमुदित मन लजावत।

भावियाँ आकर चिड़ावत,

करत चुहल पास आयीं।

तीर नैनों के चलातीं,

निकट आ आ मुस्कराती।

उठ विरहिन तेरौ कंत आयौ,

देख सखी फिर सावन आयौ।


💐सर्वाधिकार सुरक्षित💐

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

३१.०७.२०२२ ०१.१३ अपराह्न



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