कविता
अरे! बाबा ना.
प्योर सच ! अरे! बाबा ना,
प्योर सच कहूँ अथवा ना कहूँ।
झूठ का तमाचा सहूँ अथवा ना सहूँ,
ना भैया,सच हज़म नहीं हो पाएगा,
आदमी कमजोर है हाज़मा बिगड़ जाएगा।
प्योर पचाने की सुनने सुनाने की,
अब इस दौर ताकत नहीं रही!
सुनो दोस्त हवा के हिसाब से रहो,
छक कर खाओ घी बूरा और दही।
अगर आप प्योर सच कह जाएगें,
चंद फुहारों में सगे रिश्ते बह जाएंगे।
प्योर सच अब अवसान काल में है,
वक्त के मायावी फैले जाल में है।
इसलिए अब नपा तुला,
सच बोलना ही श्रेयस्कर है।
अब तो इसके ही सहारे चलो,
तभी इस मौजूदा हवा में गुजर है।
फिर तो डीयर डिसाइड हुआ,
प्योर सच साइड हुआ।
मिक्स सच में जलबा है,
इसी में रस है पूड़ी है हलबा है।
नेताओं की वाणी मिक्स सच कहती है,
तभी तो जीवन भर बिंदास मस्त रहती है।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०५.०७.२०२२ ०७.२५ पूर्वाह्न