🌷कविता🌷
✍️रात बोली एक दिन✍️
रात बोली एक दिन चुपचाप आकर पास में,
क्यों ?निरन्तर पिस रहे हो जिंदगी के पाट में !
आदमी हो आदमी सा कार्य करके देखिए,
कश्तियाँ मझधार से कुछ पार करके देखिए।
इस तरह भयभीत हो कब तक जियोगे रे ! मनुज,
और कब तक अश्रु भर शोणित पियोगे रे ! मनुज।
स्वयं सृजनकार हो प्रिय आप ही इस जाल के,
घिरता गया फँसता गया हालात में स्वयं रे !मनुज।
रुग्णता वैभव पराजय है नहीं वश में तेरे,
जाग उठकर देख नर है बहुत कुछ वश में तेरे।
धीरता रख चल पथिक है लक्ष्य तेरे सामने,
कदम धर चल अथक बांह बढ़कर थाम ले।
काल की है चाल अद्भुत समझ ना तुम पाओगे,
अगर तुम हो धीर नर तब जीत निश्चित जाओगे।
समय की भीषण कटक जब रौंदने को हो खड़ी,
चाहिए तब आप में हिम्मत लिए शक्ती बड़ी।
जब चले आंधी भयंकर तोड़ती वट वृक्ष सारे,
है यही वह वक्त जब नर स्वप्न में हिम्मत ना हारे।
जब तमाचे समय के हों तब सजग और अडिग रहना,
शांति होकर सहन करना समय के प्रहार प्यारे।
एक दिन निश्चित सुनिश्चित जय मिलेगी आदमी,
कर शपथ ले शपथ चल अथक पथ पर आदमी।
संघर्ष का मिश्रण नहीं वह जिंदगी है ही नहीं,
ठान ले और जान ले मग कदम धर दृढ़ आदमी।
बात है एक आखिरी उसको भी सुनना ध्यान से,
समझना और परखना तुम बुद्धि मेधा ज्ञान से।
है समय अनमोल इसका मोल ना दे पाओगे तुम,
रुक न जाना मार्ग में लखि शूल भय अपमान से।
भोर सौतन आ गयी है अब मैं जाती हूँ सखे,
जाग जाओ नींद से कल पुनःआती हूँ सखे।
हार मत बस मानना देखकर विपरीत मौसम,
परख अपने ज्ञान का दम है परीक्षा हर कदम।
है परीक्षा हर कदम।
✍️रचनाकार✍️
शिव शंकर झा "शिव'
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१०.०८.२०२२ ०८.०५ पूर्वाह्न