कविता-चलो चलें ध्वज फहराएं..

 

कविता

चलो चलें ध्वज फहराएं


करें वंदना ध्वज अपने की,

लेकिन इतना ध्यान रहे।

फरर फरर फहराएं जिस मग,

ध्वज का पूरा मान रहे।


ध्वज केवल खादी का प्यारे,

मात्र मात्र एक रूप नहीं।

अगणित इस पर हुए समर्पित,

इसका अन्य स्वरूप नहीं।


तीन रंग सामान्य नहीं हैं,

शांति,प्रेम,वलिदान हैं।

वीरों के शोणित से संचित,

तीन रंग पहचान हैं।


अगर मान तुम रख न सको,

मत ध्वज को प्रिय फहराना।

बलिदानी मिट्टी के मुख पर,

प्रश्न चिन्ह मत लगवाना।


अगणित वीर राष्ट्र के सेवक,

हँस हँस इस पर वार हुए।

मिली बहुत महंगी स्वतंत्रता,

बलिदानी न्यौछार हुए।


तुम भी इसका पालन करना,

ध्वज का आदर बना रहे।

गगन और धरती के उर में,

ध्वज चंदन सा बना रहे।


हाथों में लेने से पहले,

तुम्हें सुनिश्चित करना है।

ध्वज की मान,आन,मर्यादा,

सब कुछ निश्चित करना है।


आओ मेरे देशवासियो,

चलो चलें ध्वज फहराएं।

आओ मिलकर एक साथ में,

उन्नत अपना राष्ट्र बनाएं।


मज़हब की दीवारें तोड़ो,

निकलो और आह्वान करो।

अमृत उत्सव आजादी का,

चलो राष्ट्र गुण गान करो।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

०८.०८.२०२२ ०७.०९ पूर्वाह्न






एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !