व्यंग्य🌿आंख का पानी !!🌿

    

व्यंग्य 

🌿 🌿आंख का पानी !!🌿🌿


    पानी आज अपनी सरेआम बेइज्जती देख स्वयं को रोक न सका! बड़े भारी मन से उदास होता हुआ अपनी व्यथा मेरे समक्ष प्रत्यक्ष रख कर बोला- लेखक वन्धू आजकल लोग फालतू बकवास करते फिर रहे हैं। कह रहे हैं हमारी ओर से पानी घर घर हर एक मानव  तक भरपूर पहुचाया जा रहा है। सब मिथ्या सब अनर्गल वातें करते हैं ये लोग !!

      मैंने पूछा क्यों? पानी बोला मेरे हिसाब से ये सब झूठ बोलते हैं! देखिए तो सही पहले नहाने धोने सींचने पीने में पानी उपयोग होता था और आज भी उपयोग में है लेकिन बात इतनी सी है कि पानी वाला आदमी और पानी वाली आंखे लुप्त क्यों होती जा रही हैं!अगर हर आदमी पानी से तृप्त है चुटिया तक जलमग्न है! तो फिर ये मंजर क्यों ? कुओं से पानी विलुप्त,तालाबों से विलुप्त,इंसानियत का पानी विलुप्त,बात से पानी विलुप्त,और भी जाने कहाँ कहाँ से पानी विलुप्त ! फिर भी हंगामा बरपा हुआ है कि सब ओर पानी ही पानी है !

      मैंने कहा प्रिय जलमित्र सुनो बड़ी बडी सभाओं में पानी पर बहस चर्चाऐं तकरीरें सब तुम्हीं को केंद्र में रखकर की जाती हैं। औऱ तो और आपको मुफ्त में भी दे रहे हैं सियासतदान!! मानो इन्होंने खुद तुम्हारी उत्पादन इकाई लगा रखी हो या फसल पैदा कर ली हो। पानी की एक बूंद तक बना पाने में अक्षम असमर्थ आदमी पानी मुफ्त देने का वादा करता है। बड़ा अटपटा भद्दा मजाक लगता है मानवजाति के साथ शायद ! और तो और इनकी खुद की आंखों का पानी पूर्णतः सूखने की कगार पर है।

   हर तरफ़ पानी ही पानी और सियासी चर्चा के केंद्र में पानी। लेखक बन्धू ठहाका मारकर हँसते हुए बोले अरे ! जलमित्र, तुम्ही हो आधुनिक दौर के वोट बैंक ! खूब मुफ्त में लुटाए जा रहे हो। परन्तु अब शायद तुम्हें आंखों से विदा लेना होगा जलमित्र, क्योंकि वर्तमान रीति नीति के सिध्दांत आंख में पानी स्वीकार नहीं करते, समाज में पिछड़ेपन, हाशिए पर खड़े हुए की निशानी कहा जाता है आंखों में पानी वाले लोगों को ! और हाँ बिना आंख में पानी वाले लोग लुगाई बालाएं सभ्यता की अनुपम पहचान हैं या यूं कहें विकास के रथ पर गलबहियाँ डाले नजर आते हैं बिना पानी सहित। जिसकी आंखों में बातों में खातों में और कहीं कहीं रातों में जितना पानी नगण्य वह उतना मोर्डन स्पेशल अट्रैक्टिव दिखता है और शरीर से कम होते बस्त्र भी मोर्डन होंने की निशानी होते जा रहे हैं शायद सौंदर्य से शील का पानी विलुप्तीकरण की ओर है या पानी पानी ना रहा! आधुनिकता की अंधी दौड़ के गर्त में फँसकर लोग रोज रोज पानी विहीन विचारधारा,व्यवहार,वातावरण, की ओर गतिमान अग्रसर होते जा रहे हैं। लोग ! बिना आंखों में पानी के ! अथवा बिना पानी वाले होकर स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं। बिना पानी वाले मानव तरक्की के पथ पर गतिमान भी खूब दिखते हैं शायद अब पानी वाला युग अपने आखिरी चरण में है विलुप्तीकरण की ओर,लेखक बन्धू ने सादर सविनय जलमित्र से कहा अब आप ही निर्णय करो आपने रहना है या जाना है विचार आपको स्वयं करना पड़ेगा मेरे प्रिय जीवन पालक। अब भावनात्मक,शील,सदाचार,चरित्रता,सज्जनता, सत्य भाषण, का पानी भी सूखने की कगार पर है जलमित्र!

    पानी अपनी आंखों में पानी भरकर बोला महोदय आधुनिक दौर स्वार्थ के वशीभूत होकर रतौधी के रोग से ग्रसित होता जा रहा है। अब न तो इनकी बात में पानी नजर आता और ना आंखों में पानी! ऐसे दौर में अब मेरा क्या मूल्य!लेकिन भयंकर धूप में यही आदमी एक एक बूंद पानी के लिए संघर्ष करता दिखता है। लेकिन मैं आज इनकी आंखों में बातों में वादों में दिखने के लिए संघर्ष कर रहा हूँ। इसी संवाद के साथ जलमित्र अपनी आंखों में पानी लिए विदा हो गए प्रश्न बड़ा खड़ा कर गए जलमित्र वन्धु !

    वास्तविकता में क्या हमारी आंखों में, बातों में, वादों में,पानी शेष है! प्रश्न आपसे है। हम सबसे है। जवाब खोजिए?औऱ आंखों में पानी हो तो जरूर चिंतन मनन कीजिये!!

  सर्वाधिकार सुरक्षित

✍️रचनाकार✍️

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१७.०८.२०२२ ०५.४१ अपराह्न

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