शायरी
ख्वाबों का कारवाँ
बढ़ता ही जा रहा है,ऐ दिल ख्वाबों का कारवाँ।
पता भी नहीं ख़बर भी नहीं,कब शाम हो जाए।
रोज़ रोज़ नए नए ख़्वाब,और उम्मीदों की सुबह।
भागता रहा ताउम्र बस,इन ख़्वाबों को लाद कर।
परवरदिगार रब के यहां,ज़मानत नहीं चलती।
सज़ा ग़र मुकर्रर हो जाये,कोई ताकत नहीं चलती।
सज़ा बदली नहीं जाती,किसी भी सिफ़ारिश से।
वह जानता है तू गुनहगार,अव्व्ल दर्जे का रहा।
लोग चेहरे पर बहुत से चेहरे,लगाकर रखते हैं।
ज़रूरत के हिसाब से,चेहरे बचा कर रखते हैं।
दिखाबटी बनाबटी रिश्ते,ना बनाइये मेरे अज़ीज।
मैं आजिज़ आ चुका हूँ,रिश्तों को मरते देख कर।
माहिर खिलाड़ी हो तुम,और शातिर शिकारी भी।
अपनों के दर पर ज़रा,शराफ़त से आना सीख लो।
तेरी हरकतें अनदेखी करता रहा,यूँ हीं जानबूझकर।
तुझे लगता रहा,नज़र हो गयी कमजोर मेरी।
ख़िलाफ़ रहना और नापसंद करना,ग़लत बात नहीं।
मगर सामने जुबान रखने से,परहेज़ क्यों है दोस्तो।
अपनी हैसियत अपनी औक़ात जानते तो हो।
चश्मा लगा हुआ है,हटाकर देखिए फिर बोलिए।
चेहरे की हवाइयाँ,साफ साफ बयाँ करती रहीं।
तू ग़फ़लत में है ज़रा,अपनीं नजर से देख ले।
बोलो खुलेआम सामने,सच सच बोलो आप भी।
आवाज़ घुट जाएगी ग़र ,आप सच बोले नहीं।
बदलता दौर है,और बदलता रिश्तों का मिज़ाज।
यहां अब पास अपना भी,बहुत खलता है दोस्तो।
हाथ कंधे पर रक्खा है,कि नहीं जरा ग़ौर से देखो।
वक़्त पर हाथ कंधे से,कहीं ये खींच ना लें दोस्तो।
साफ साफ सच सच बेवाक,बात बोलोगे अगर।
इश्क़ और दोस्ती बस, चंद दिन की बात मानो !!
शिव शंकर झा "शिव"
✍️स्वतन्त्र लेखक✍️
व्यंग्यकार
शायर
३१.०८.२०२२ १२.५५ अपराह्न२०५वां