कविता ✍️होंठ नीले !!✍️

 

कविता

होंठ नीले !!


चलो चलकर जानते हैं।

आदमी की आह को।।

उठ रहे उसके ह्रदय में।

आह के प्रवाह को।।


किसलिए ये कर रहा है।

करुण क्रंदन रात में।।

आओ देखें द्वार जाकर।

पास चल के साथ में।।


चलो लेकर आपको।

चलते हैं उसके द्वार तक।।

टूटता जो रोज क्षणक्षण।

उस मनुज लाचार तक।।


तुमने समझा तुम।

बहुत उम्दा किये हो।।

है पता कुछ आपको।

क्या क्या लिए हो।।


घुट रहा है रोज।

तिलतिल आदमी।।

लग रहा खुशहाल।

तुमको आदमी।।


आय के प्रयत्न।

लगभग ढह गए।।

बोझ बढ़ता कर्ज का।

दबकर इसी में रह गए।।


कर्ज की विष बेल।

जाती भींचती आकर गला।।

फँस गया दलदल के अंदर।

आदमी था जो भला।।


कर लिया निर्णय।

उबर कैसे सकूँगा।।

इस तरह अब और।

घुटकर ना जिऊँगा।।


था बहुत गुमशुम।

नहीं कुछ कह सका।।

आदमी खुद्दार था।

झुककर ना ज्यादा रह सका।।


बदलती दुनियां की नीयत।

है मगन बस आप में।।

क्या पड़ी हमको किसी के।

मानवीय संताप में।। 


हम रहे ना आदमी।

बस आदमी से दिख रहे।।

हो बगल में खूब मातम।

मगर खुलकर हँस रहे।।


उसका घर जलता रहा।

हम पास तक ना जा सके।।

अगला घर अपना निशाना।

पार पा गर पा सके।।


घुट रही दम अश्रु अविरल।

होंठ नीले पड़ रहे थे।।

क्या हुआ कैसे हुआ।

गात पीले पड़ रहे थे।।


मौत के अति शांति मय।

वातावरण में खो गया।।

आदमी था स्वाभिमानी।

नींद गहरी सो गया।।


संघर्ष और प्रयत्न भी।

उसने किये थी ढेर सारे।।

ईश्वरीय उपहार जीवन।

कौन बदले लेख प्यारे।।

कौन बदले लेख प्यारे।।


शिव शंकर झा "शिव"

✍️स्वतन्त्र लेखक✍️

व्यंग्यकार

शायर

३०.०८.२०२२ १२.१३पूर्वाह्न









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