ख्वाहिश भी नहीं !!
लोगों का काफ़िला है,काफ़िले में लोग।
नजरें ज़रा उठाइये,कम हो रहे हैं लोग।।
लाज़िम नहीं कि आप,मुझसे नामुत्तफ़िक न हों।
हर शख़्स का अपना,अलहदा मिज़ाज है।।
मेरा रक़ीब कोई नहीं,ना ज़िगरी यार भी !!
मजमा लगा हुआ है,चल मस्त होकर चल।।
मेरी तमन्ना भी नहीं,कोई ख्वाहिश भी नहीं।
बस आदमी कुछ ढूंढ लूँ,फिर शाम हो जाये।।
राह में सैकड़ों इंसान,चल रहे थे मेरे अज़ीज।
साथ बस था एक दो ही,शेष थे बस पास में।।
फ़लक पर सितारे,चमकते बहुत है रात को।
लेकिन सुबह के ख़ौफ़ से,आते नहीं दिन भर।।
मुझे गमों से मातमों से,अब कोई खौफ़ नहीं।
इस उम्र में मैनें उम्र से,ज्यादा समय देख लिया।।
मेरा इश्क किताब से है,कलम से है दोस्ती।
बहुत गहरी हो रही है,आजकल ये दोस्ती।।
फ़लक पर चमकते सितारे,बड़े नाराज से हैं।
उन्हें अब देखने कोई, छत पर नहीं आता।।
मुतमईन ना रहो इतने,ज़नाब अपने आप में।
क्या पता कब जिंदगी,दाव अपना बदल दे।।
जैसा हूँ जो हूँ आपके,सामने हूँ खुलेआम।
छिपने छिपाने की अदा,मुझको नहीं आती।।
चुगलियों का दौर तुमको,मुबारक़ दोस्त मेरे।
मेरी आदत नहीं पीठ पीछे,बात करने की।।
कभी लहू जब दग़ा दे,दलालों के साथ मिल।
जवाब करारा जरूर हो,वक़्त की माँग है।।
हिसाब दो टूक पाक साफ,रखना मेरे दोस्त।
सही और गलत में अंतर,सब जानते हैं लोग।।
✍️रचनाकार✍️
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२५.०८.२०२२ ०६.०२ अपराह्न(२०३वां)