शायरी-कफ़न में जेब !

सुख़न

कफ़न में जेब !


चाहिए मुझको भी जेबें,बोल रहा हूँ "मैं कफ़न"!

बहुत लंबे दौर से,मैं जेब की ख्वाहिश में हूँ।


खूब जेबें हर तरफ, रखते हो तुम मेरे अज़ीज।

और मैं मुफ़लिस रहूँ,अब नहीं चल पाएगा।


मुझे जिसने क्रय किया,वह नहीं पहना मुझे।

जिसने पहना दोस्तो,ख़ासियत खोला नहीं।


सफेद पोशाक हूँ लेकिन,दाग़दार नहीं मेरे अज़ीज।

मैनें अपनी आबरू को,आज तक बेंचा नहीं।


मैं अभी तक टेक्स से,बाहर रहा था दोस्तो।

टेक्स भरकर मिल रहा हूँ,कम नहीं हूँ दोस्तो।


आपको मालूम है मैं शुरू से,मौन हूँ गम्भीर हूँ।

मेरे यहाँ सरहद नहीं,मज़हब नहीं है दोस्तो।


मैं बड़े ही प्यार से,माँ की तरह लेता हूँ भर।

सिहर उठता हूँ बहुत,मासूम हो कोई अगर।


मग़रूर क्यों हो दोस्त मेरे,कुछ नहीं मिलना यहाँ।

छोड़ दे कब कौन घर,मिलना नहीं नामोनिशां।


होशियार भी रहो,ख़बरदार भी रहो मेरे अज़ीज।

वक़्त जो चला गया,मिलता नहीं है लौट कर।


सफ़र सिफ़र हो सकता है,ग़र रास्ता नहीं समझे।

हवा नाराज है ख़िलाफ़ है,तुम मिज़ाज नहीं समझे। 


तुम वही हो जो रिश्तों को,ज़ख्म दे देकर बढ़े हो।

आइए दरबार मेरे,देख लूँ कुब्बत तेरी।


खौफ़ तेरा रूआब तेरा,बस चंद दिन की बात है।

जानता हूँ आदमी सब,क्या तेरी औक़ात है।


जिंदगी खुराफ़ातों,जालसाज़ियों में गँवा दी।

मग़र आख़िरी वक़्त,उम्दा मुक़ाम चाहता है।


ख़ैर तेरे गुनाह बहुत हैं,गिनाऊँ दोस्त कितने।

आदमी बचा नहीं,मगर मुझसे इनाम चाहता है।


मौत के शिकंजे की ज़द में,पल पल चले आते हो।

बड़े बेशऊर हो,फ़क़त दौलत पै लड़े जाते हो।


💐सर्वाधिकार सुरक्षित💐
रचनाकार
शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०४.०८.२०२२ ०४.१३ अपराह्न

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !