✍️कविता✍️
🙏मित्र बत्तीसा🙏
दोस्त मित्र यार,भीड़ भाड़ प्यार।
दिखावे पर जोर,जोरदार शोर।।
पार्टी की जान,दोस्त मेरी शान।
नकली भेष रंग,परख निरख ढंग।।
वक्त जब विपरीत,भाग जाएं मीत।
हार जाए प्रीत,गुन गुनाओ गीत।।
अब कहाँ वे मित्र,जो सदा पवित्र।
मायने बदल गए,चाल छद्म पल गए।।
ताक झांक नज़र,धोखा हर पहर।
कम ही मित्र शेष,जो रहें विशेष।।
दावतों का ज़ोर,दृष्टि दोष घोर।
जेब तक ही शेष,मित्रता विशेष।।
समय का प्रहार,देख भागें यार।
ऐसे बहुत दोस्त,नोंच डालें गोश्त।।
घर में सुघड़ नार,घोंप दें कटार।
कर दे घाव ज़ोर,मित्र मित्र शोर।।
रहिए सावधान,बदल गए विधान।
हानि लाभ मान,समझ लो सुजान।।
आज के जो मित्र,हैं बड़े विचित्र।
चल दें उल्टा दाव,दें दें गहरा घाव।।
वक्त की पुकार,नजर रक्खो चार।
समझ सोच बात,है नहीं बरात।।
देख नयन खोल,ढ़ोल गोल पोल।
सत्य बोले बात,सामने ही आत।।
मित्र सच्चा जान,है यही महान।
बदल दे कुमार्ग,दे सके सुमार्ग।।
मित्रता का हाथ,साधियेगा साथ।
मित्र के प्रकार,एक नहीं हजार।।
हाँ में हाँ मिलात,सावधान भ्रात।
करते लाभ सिद्ध,रखते दृष्टि गिद्ध।।
चाल चलन भाव,परख लो स्वभाव।
अच्छे मित्र खोज,घटिया मित्र बोझ।।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१३.०९.२०२२ १०.५३अपराह्न(२११)