🌷कविता🌷
✍️कुछ मग भटके !!✍️
मानव इच्छाएं हैं अनेक,
कुछ मिलें सहज छूटें कुछेक।
कुछ संघर्षों के बाद मिलें,
तप तप कर जीवन पुष्प खिलें।
अभिलाषाओं का मोहपाश,
जिंदादिल करते नित प्रयास।
कुछ खो जाते अपना सुमार्ग,
कुछ पा जाते उत्कृष्ट मार्ग।
चाहते सब जीवन हो श्रेष्ठ,
कुछ पा जाते हैं सर्वश्रेष्ठ।
कुछ उलझ गए संशय के बीच,
पूरा जीवन बस खींच खींच।
कुछ मग भटके,
कुछ पग पटके।
कुछ दिग्भ्रमित है देख डगर,
रुक मत चल पथ पर यायावर।
है मिला जन्म मानव का ग़र,
तू समझ परख ये व्यर्थ न कर।
कोरी पुस्तक मत छोड़ मनुज,
कर हस्ताक्षर स्वयं स्वर्ण जड़ित।
मरना निश्चित है भान तुम्हें,
है इसका लगभग ज्ञान तुम्हें।
दब दब झुक झुक रुक रुक कब तक,
तू साध लक्ष्य शक्ति तक लख।
है जीवन अनुपम अतुल मूल्य,
दे सके क्या तुम कुछ सुमूल्य।
है उम्र ढ़ले दिन रात सतत,
कुछ ध्यान करो क्यों हुए विरत।
अपने तक जीना क्या जीना,
घुट घुट कर आँसू क्या पीना।
उठ कदम बढ़ा आ परख शक्ति,
तू सबल श्रेष्ठ है ज्ञान युक्त।
डग भर कर चल ले भीष्म शपथ,
मग हो दुष्कर चल कदम अथक।
है तुझमें अतुलित बल मेधा,
कर विजय चला चल मित्र पथिक।।
✍️रचनाकार✍️
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१६.०९.२०२२ ०८.३९अपराह्न (२१३)