✍️गज़ल✍️
❤️ चलो चलें ❤️
चलो चलें गुमसुम आँगन से बात करें,
तल्खियाँ छोड़ें अपनों से मुलाकात करें।
वक़्त गुज़ारें जरूर कुछ अपनों के साथ,
ज़रा नज़दीक चलें कुछ दिल की बात करें।
कुछ ख़बर लगे कुछ ज़िक्र हो आपस में,
चलो हम हीं कदम बढ़ा दें साथ साथ चलें।
नज़दीक जाओगे तो कम होगें ये फ़ासले,
चलो कम करें फ़ासले और पास पास चलें।
तल्ख़ियों का सिलसिला ये थमता ही नहीं,
चलो हम इश्क़ और अमन का व्यापार करें।
क़ुदरत ने रब ने हमें दी हैं नियामतें तमाम,
चलो इन्हें तराशें तलाशें चमन गुलज़ार करें।
जमाने से हमें शिकायत यूँ हीं बेवजह रही,
नज़र बरोबर रक्खो तो फिर कोई बात बनें।
फ़ालतू की बातें और इन बातों का असर,
छोड़ दो फ़ालतू बातें तब सही हालात बनें।
अकेले उनकी बेवफ़ाई का ज़िक्र यूँ हीं ठीक नहीं,
आप के चलन नक्शे कदम भी ज़नाब ठीक नहीं।
खामियां उस तरफ से भी रहीं और इस तरफ से भी,
बात को बात रखें हर वक़्त हवा बनाना ठीक नहीं।
✍️रचनाकार✍️
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१९.०९.२०२२ १०.५५ पूर्वाह्न(२१४)