कविता✍️पहरेदार !!✍️

 

कविता

पहरेदार !!


नीचे से ऊपर तक जाओ,

लौटो फिर नीचे तक आओ।

कितना बदला तौर तरीका,

समझो सोचो बुद्धि लगाओ।


पहरेदारों के बलबूते, 

छोड़ न देना चौका झार।

बनी मंडली मिली कुंडली,

चोर उचक्कों की भरमार।


मिलते जुलते नाते खुलते,

सबके सब हैं साझीदार।

मात्र दिखावा करें छलावा,

हैं सबके सब पक्के यार।


खाकी वर्दी पर हावी है,

खादी वर्दी काली वर्दी।

सरकारी पिस्टल पर हावी,

चढ़ती सिर पर गुंडागर्दी। 


ख़बरनवीस हुए कमज़ोर,

विज्ञापन पर सारा ज़ोर।

छपती ख़बर न सीधी बात,

बदला दौर घटी औकात।


भोजन वितरक भए स्कूल,

शिक्षक पाठ रहे हैं भूल।

रोटी चावल दाल का खेल,

शिक्षा के मानक भए फेल।


नीचे ऊपर उसके ऊपर,

होते नित नित मालामाल।

खूब उड़ाया खूब पचाया,

ठहरी मगरमच्छ सी खाल।


ख़ुद खाए और खूब खबाए,

चमचों को रसगुल्ले लाल।

रोयी जनता सोयी जनता,

ना सुध चिंता कोई हाल।


अपनी जेबें भरीं करारी,

जनता की हालत बेहाल।

निर्देशों के फ़रमानों के,

काले काले मोटे जाल।


मिला निवाला लज्जा वाला,

फटी दुशाला बटती हाला।

रोजगार पर जड़ता ताला,

हवा हवाई खेल निराला।


मंहगाई सब उड़ गई भाई,

रोजगार की हवा चलाई।

चोर उचक्के देश छोड़ गए,

खुशहाली घर घर में आई।


अपराधी सत्ता से साफ,

अपना पाप करें ख़ुद माफ़।

अपनी ढ़पली अपना राग,

जाग जाग ऐ जनता जाग !!


घर में सेंध लग रही यार,

जाग रहा पर पहरेदार !!

होती लूट साफ सब झार,

किसका दोष कौन ? ग़द्दार !!


✍️सर्वाधिकार सुरक्षित✍️

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२७.०९.२०२२ ०८.३१ पूर्वाह्न(२१७)






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