शेर 🙏सियासी बाज़ीगर🙏

 

✍️शेर✍️

🙏सियासी बाज़ीगर🙏

(१)

चंगुल में कसो ऐसे,कि वे ठहरे से रह जाएं।

चलो चालें चलाकी से,वे बहरे से रह जाएं।

(२)

न कोई बोल पाए बात,न कुछ खोल पाए पोल।

कसो ऐसा शिकंजा जीभ पर,गूंगे से रह जाएं।

(३)

ग़र आ जाएं चंगुल में,नदी नाले अगर इनके।

जो इनके अर्दली से हैं,उन्हीं भक्तों में बंट जाएं।

(४)

हवा ईश्वर की दौलत है,हुकूमत है नहीं इनकी।

अगर हो जाए वश इनके,हवा को भी तरस जाएं।

(५)

ज़बरदस्ती से बस्ती को,खुला नीलाम कर देगें।

जो कोई कर नहीं पाया,ये वैसा काम कर देगें।

(६)

अभी तो है बक़ाया बहुत कुछ,देखो सुनो यारो।

बचा जो ठौर मरघट का,उसे नीलाम कर देगें।

(७)

हमें और आपको,अपनी तर्जनी पर नचाते हैं।

सियासत के खिलाड़ी हैं,कफ़न भी बेंच खाते हैं।

(८)

फ़ितरत में है नहीं ईमान,और अच्छी नियत यारो।

बड़े शातिर शिकारी हैं,फँसा कर मुस्कराते हैं। 

(९)

न शिक्षा से न रक्षा से,न नारी की सुरक्षा से।

इन्हें बस वास्ता केवल,स्वयं की जेब रक्षा से। 

(१०)

लुटे हर रोज़ इज्ज़त आबरू,जोया और झुनियां की।

हैं ख़ुद में मस्त नेताजी,पड़ी क्या आम रक्षा से।

(११)

डकैती में भी हिस्सा है,छिनैती में भी हिस्सा है।

सियासत के हैं बाज़ीगर,बड़ा मशहूर किस्सा है।

(१२)

शरणगाह हैं ये गुंडों के,गुनाहों के सिपाही हैं।

सभी यहाँ एक हैं यारो,दिखाबे की लड़ाई हैं।

(१३)

हमें ग़ुमराह करते हैं,सयाने हैं सियासी लोग।

बड़े बेहतर मदारी हैं,असल में भाई भाई हैं।

(१४)

सदन की बहस को देखो नज़र चेहरे पर कुछ रखना।

बहस के वक़्त भी इनके खुशी चेहरे पै छाई है।

(१५)

बाद में साथ मिलकर सब,खींचते मुर्गियां मुर्गे।

सियासी दोस्त है सब ही,नही दिखती बुराई है।

(१६)

ये चेहरे पर नए चेहरे,लगाकर रोज़ आते हैं।

जो देखें भीड़ भाड़े की,हँसी होठों पे लाते हैं।

(१७)

हवा का देख करके रूख़,बयानों को बदलते हैं।

फ़क़त कुर्सी की चाहत में,दग़ा धोख़ा भी करते हैं।


✍️सर्वाधिकार सुरक्षित✍️

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२९.०९.२०२२ १०.५८ पूर्वाह्न (२१८)




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