शेर✍🏻नज़र मंज़िल पर✍🏻

   

  ❤️शेर ओ शायरी❤️

✍️नज़र मंज़िल पर✍️


मायूस होकर जिंदगी,जीना कोई जीना हुआ।

वह परिंदा,क्या?परिंदा,देख डर जाए उड़ान।


अपने कंधे पर रखी,बंदूक अपनी जानिए।

क्या पता कब ग़ैर के,कंधे दग़ा तोहफ़े में दें। 


ख़ुद की ताक़त हौसला,ख़ुद का रहे तब ठीक है।

ग़ैर की ताकत के बूते,हौसले टिकते नहीं।


सहम कर कब तक बसर,कर पाओगे ये जिंदगी।

अपनी ताकत अपनी हिम्मत,देख ले कुछ जिंदगी। 


हैं बहुत से दोस्त बेशक़,मगर कितने साथ हैं।

हैं हवा में हाथ कितने,साथ कितने हाथ हैं।


बेख़ौफ़ हो जो रोशनी,करता रहे आंधी के बीच।

है इसी का नाम ताक़त,है यही दम हौसला। 


भीड़ का हिस्सा बनोगे,भीड़ ही खा जाएगी।

चीर कर जो बढ़ा आगे,भीड़ जय जय गाएगी।


है बहुत कुछ तेरे अंदर,समझ ना कमज़ोर तू।

तेरे दम पर सब कहानी,तेरे दम पर है जहाँ।


उनसे करता रहा तू,उम्मीद वफ़ा की यूँ हीं।

दग़ा देकर वेवफ़ा होना,यही फ़ितरत में है।


खुमार है जिन्हें अभी,अपने ऊंचे मुकाम का।

नज़र कुछ पीछे करो,देख लो अब हैसियत।


ठोकरों का ठीकरा,पत्थर को देना ठीक क्या।

नज़र तो अपनी रही,देख कर चलना ज़रा।


इस तरह हो बेसबर,होकर न भागे जाइए।

मंजिलें तो मंजिलें हैं,बेख़ौफ़ चलते आइए।


छोड़ दो ग़म दूर ही,चलते रहो अपना सफ़र। 

कारवाँ बन जायेगा इक,हो न जाना बेसबर।


हार कर किसने फ़तह,पायी है दुनियां में बता।

नज़र मंजिल पर रहे,बात कर सब अनसुनी।


क़ामयाबी तो रही,मग़रूर मासूका सुनो।

ग़र इसे दी छूट हल्की,बदल लेगी हमसफ़र।


देखिए कैसे मिले सुर,लोग सब गाने लगे हैं।

जो जुदा थे अब तलक,पास अब आने लगे हैं।


✍️सर्वाधिकार सुरक्षित✍️

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०१.१०.२०२२ ०२.२८ अपराह्न(२१९)




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