कविता
दशकंधर जिंदा है !!
जिंदा है भय भूख गरीबी शोषण पीड़ा जिंदा है,
जिंदा हैं रावण के परिजन लूट राहजनी जिंदा है।
जिंदा है भय भूख हताशा निशिचर सेना जिंदा है,
जिंदा हैं कर चोर लुटेरे सब कुछ अब भी जिंदा है।
भृष्टाचार लूट का रावण सुनो अभी तक जिंदा है,
अत्याचार झूठ का रावण वह भी अब तक जिंदा है।
महंगाई का खड़ा दशानन दबा रहा गर्दन मुष्टिक से,
मज़हब का सिर चढ़ता रावण सीना ताने जिंदा है।
दशकंधर कागज के हम सब जला रहे हैं बड़े बड़े,
जिंदा रावण नोंच रहे नारी तन खुल कर खड़े खड़े।
उन्हें जलाओ सजा सुनाओ सम्मुख जा क्यों झुक जाते हो,
करो चोट प्रहार दनुज पर क्यों जाने से भय खाते हो।
मामा मरीचि अब भी जीवित है रूप बदलता घड़ी घड़ी,
अरिमर्दन निंद्रा के वश में पड़ा सो रहा नींद घणी।
कालनेमि का ह्रदय काल सा लेकिन राम का लिए सहारा,
अभी सभी तो शेष बचे हैं पवन तनय कर दो निपटारा।
मेघनाद मद के वश होकर नहीं समझता गलत सही,
वह रावण का है अनुयायी बात मानता सही कही।
अहिरावण का कार्य अपहरण है जो अब तक भी जारी है,
सीता डरती पीत वस्त्र लखि छद्म भेष भय भारी है।
छोड़ो कागज के दशकंधर जिंदा रावण बड़े बड़े।
देखो देखो नयन उघाड़ो यहाँ वहाँ हर तरफ खड़े।
अगर दहन इनका न हुआ ग़र सब कुछ खा कर चट जाएंगे,
राम राज्य मानवता के सब नीति नियम सब मिट जायेगें।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
०५.१०.२०२२ ०९.४५ पूर्वाह्न(२२०वां)