शेरो-शायरी🌿किरदार🌿

 

शेरो-शायरी

✍️किरदार✍️


किरदार होकर भी,बड़े मग़रूर दिखते हो।

थोड़े से नासमझ हो,नशे में चूर दिखते हो।


किरदारों का क्या? इशारे मालिक के चलना है।

कभी दर्द कभी हँसी,कभी खुलके बहकना है।


किरदार हैं हम सब,इससे ज्यादा हैसियत क्या है !

कठपुतलियां हैं हम,इससे जादै शख़्सियत क्या है।


सभी के हिस्से में,अपना अपना किरदार होता है।

कोई जीता है मस्ती में,कोई सिर पकड़ रोता है।


क्या बादशाहत क्या हुकूमत,क्या सियासत का गुमान।

हम तो बस किरदार हैं,देख ख़ुद उजड़े मकान।


कोई ज़मीर दार बना,किसी को अमीर बनाया।

ये तो मालिक का करम है,हमें किरदार बनाया।


पर्दे के सामने हो,तब तक ही जाने जाओगे।

अगर पर्दा गिर गया,फिर दूर हो खो जाओगे।


मिले किरदार में हम हैं,मिले किरदार में तुम हो।

ये तो बस इक सफ़र है,बड़े मगशूल हो ग़ुम हो।


किरदार में तो बस कुछ,लम्हात का कमाल है।

होठों पर हंसी गुस्सा इश्क़,तोहमत का जाल है।


कभी पिता का किरदार,कभी बेटे का मिला।

कभी फूल खिले बागवां,कभी उजड़ा जहान मिला।


सलीक़े से शराफ़त से,कलाकारी तो कीजिए।

किरदार जो अपना है,उसे जिंदा तो कीजिए।


बहुत आए गए हमसे उम्दा,बेहतर मझे किरदार।

सबको रखा झुका कर,उस मदारी ने बार बार।


मसखरे किरदार ने हँसाया भी,अश्क भरभर रुलाया भी।

एक से एक उम्दा किरदारों ने,घर ढ़हाया भी बचाया भी।


मैं तो इक किरदार हूँ,ग़म ऐ हालात बताने नहीं आते।

आप भी तो नहीं पूछे,पास चल कर नहीं आते।


चेहरे तो चेहरे रहे,कब तलक छुप पाएंगे।

एक दिन महफ़िल में,ख़ुद सामने आ जाएगें।


समय तो ठहरा समय,ना किसी का है गुलाम।

कौन कब यहाँ ख़ास हो,कौन खो डाले मुक़ाम।


वक़्त की अपनी हुकूमत,हर तरफ इसका है राज।

बदल दे कब हैसियत,अलविदा रुतबा मिज़ाज।


मैं तो बस तल्खियाँ दूरियाँ,घटाने को झुकता रहा।

सुन सुन के भी लफ्ज़ तल्ख़,सफ़र चलता रहा ।


उसके अश्क़ देखकर कुछ,अंदाज़ा लगाया जाए।

ये गुमशुम क्यों है पास चलें,किरदार को हँसाया जाए।


चेहरे पर चेहरे लगे,और उस पर भी नक़ाब!

वक़्त तेरा शुक्रिया,हो गए ख़ुद बेनक़ाब !!


सबसे बड़े मदारी की नज़र,हम सब पर है।

हिसाब किताब रंग ढंग,की खबर उस पर है।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२२.१०.२०२२ ०८.३१ पूर्वाह्न(२२५)



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