कविता
🌿🌿यायावर🌿🌿
यायावर चल पग पग थाम,
जीवन जगत न करि विश्राम।
संघर्षों में उत्कर्षो में समता रख,
चलता चल पथ पर नित अविराम।
गिरकर उठ फिर चल डग भर,
मग से मत हट चल अथक डगर।
कल की चिंता में मत जल भुन,
क्या निशि वासर या स्वप्न प्रहर।
कर्तव्य मार्ग पर कदम बढ़ा,
क्या सोचे संशय लिए खड़ा।
जब तक स्वयं शक्ति न जानोगे,
ना साध सकोगे लक्ष्य बड़ा।
दृढ़ रहना जब हो विपति काल,
हो दृश्य हर तरफ कुटिल चाल।
भय त्याग मार्ग चल जाग जाग,
उन्नत कर स्वयं निज दिव्य भाल।
कब तक भय के आगोशों में,
बन्धन मय जटिल कुपाशों में।
घुटघुट घुट जाना चाहते हो,
भय भूख नियति के खांचों में।
तू इधर देख या उधर देख,
उत्तीर्ण देख या विफल देख।
तू भी विशेष है ख़ास बहुत,
तू त्याग त्रास नव आश देख।
जो सफल हुए वे भी नर हैं,
असफलता लिए हुए भी नर।
इतिहास बने इतिहास लिखे,
सब नर ही हैं कुछ देख उधर।
कुछ निरख परख शक्ती अपनी,
स्वयं बना अलग हस्ती अपनी।
जिसने परखी स्वयं की शक्ती,
वह दिखा दृश्य चमकी हस्ती।
शक्ती तुझमें भक्ती तुझमें,
तू ज्ञानवान मानव सुजान।
अपने स्वयं की पहचान जान,
तू अति विशेष तू अति महान,
तू ज्ञानवान मानव सुजान।।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
२९.१०.२०२२ ०३.३९अपराह्न(२२८)