🌷कविता🌷
कदम बढ़ाओ !!
चलना तो होगा,
नदी गह्वर उन्नत चट्टानों को लाँघ।
फूलों के मध्य भी,
शूलों के साथ साथ पग पग थाम।
क्यों ?भय के साथ,
क्या ?कम है तू मिथक तोड़ भय त्याग।
स्व के अंदर झांक,
उठ शपथ कर जाग जाग जाग।
कब तब निढ़ाल होकर,
अपने अंतर् का बल खोकर रोओगे।
भाग्य को कोसते हुए,
अपना बहुमूल्य वक्त यूँ हीं खोओगे।
है मिला प्रकृति से बहुत,
फिर भी आते क्यों निर्बल से दृश्य।
सब कुछ है तेरे निकट,
शक्ति फूँक बढ़ देख नए परिदृश्य।
रणधीर सहज रहते हैं सम,
नहीं डराता उनको अंतर्द्वंदों का भार।
सजग सहज मतिधीर श्रेष्ठनर,
ना छुपें ना रुकते देख वक्त की मार।
जो कदम बढ़े साहस के साथ,
वे पाए निश्चित मार्ग सफलता का फल।
तू तोड़ बन्ध अंतर् के सारे,
है खड़ा मार्ग में विजय छत्र लेकर पल।
हो लपटों के पास भी रहना,
अपने मग डग का भान तुझे ना बिसरे।
हो कपटों के पास बिछौना,
मन निर्लिप्त भाव में रहे ना पग लिसरे।
निर्बल और असहाय रहा जो जग में,
पग पग पाता अपमान बड़ा है।
कमजोर सदा आहार बना हर युग में,
है प्रश्न बड़ा मुंह फाड़ खड़ा है।
शक्ति और सामर्थ्य धीर नर पाते,
धरती गाती गीत सकल सुख पाते।
जिनका बल और बुद्धि देशहित आता,
ऐसे ही नर शूरवीर यश वैभव पाते।
चलना तुम भी एक बार तो प्यारे,
सब कुछ है सन्निकट देख जग प्यारे।
अपने अंतर् की शक्ती मेधा स्वयं जगाओ,
पा जाओगे लक्ष्य धैर्य से कदम बढ़ाओ।
कदम बढ़ाओ कदम बढ़ाओ !!
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
११.११.२०२२ ०२.३८अपराह्न(२३५)