कविता-पार्षद ऐसा नहीं चाहिए !!


✍️कविता✍️

पार्षद ऐसा नहीं चाहिए !!


पार्षद ऐसा नहीं चाहिए !!

जो ख़ुद कभी पास ना आए !!

वक़्त पड़े पर पीठ दिखा दे,

सेवक से स्वामी बन जाए !!


खूब छकाए पाँच वर्ष तक,

सड़क खड़ंजे सीवर खाए।

देखे ना मुड़कर वोटर को,

साफ सफाई नज़र न आए।


भाषा जिसकी संयत ना हो,

कागज़ की भाषा ना समझे।

बुरे वक्त जो द्वार ना झाँके,

कहे सुने का बोध ना समझे।


स्वयं में तानाशाह बने जो,

स्वयं को श्रेष्ठ खिलाड़ी समझे।

जनता को मतदाता को जो,

कोरा निरा अनाड़ी समझे।


जो अपने पैसे के दम पर,

टिकट पार्टी से पा जाए।

सावधान रहना ऐसों से,

बहरूपिए ये काम न आए।


पार्टी का सिंबल मत देखो,

बस तुम क़ाबिल सेवक देखो।

होवे काम पड़े का साथी,

ऐसा तुम जन सेवक देखो।


पृष्टभूमि भी ध्यान में रखना,

शातिर अपराधी मत चुनना।

वेष बदलकर आए सम्मुख,

ऐसा मत जन सेवक चुनना।


मत माँगे तब गाय लगे जो,

पाछें से फिर खूब ठगे जो।

चुनना उसे जो तुम्हें सुहाए,

बुरे वक्त पर साथ निभाए।


ऐसे बिल्कुल चुन मत लेना,

ऐसों को फिर मत मत देना।

जिनकी देख चुके करतूतें,

इनको पुनःसमय मत देना।


जो पौधे गमले चट जाए,

सड़क खड़ंजे सभी पचाए।

पांच वर्ष तक पास न फटके,

फिर अपना मुखड़ा दिखलाए।


सावधान रहना इन सबसे,

जिनमें उक्त गुणों का घर हो।

मत देना उनको ही तुम सब,

जिनमे शील सनेह प्रखर हो।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक 

व्यंग्यकार

शायर

१४.११.२०२२ ०८.०५पूर्वाह्न(२३६)






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