सुख़न-ख़िलाफ़ हैं वे ख़ास हैं !

 
❤️ सुख़न ❤️

ख़िलाफ़ हैं वे ख़ास हैं !!

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आँधियों का शौक़ है दरख्तों को गिराना
दरख्तों की जिद्द है परिंदे डर न जाएं

चलो चलें तलाशें तराशें इक ऐसा जहाँ
जहाँ "इंसान" इंसान सा नज़र आता दिखे

जो ख़िलाफ़ हैं वे सबके सब,अज़ीज हैं ख़ास हैं!

दोस्तो आपकी सब मेहरबानी है,जो रास्ता नज़र आया


तुम्हीं तो हो मुझे बेहद,चाहने वालों में शामिल

ख़ुद से ज्यादा मेरा नाम,लबों पर लिए रहते हो


फ़ायदा बहुत मिला मुझे,तुम्हारी कही सुनी बातों से

तेरी बदौलत मेरे दोस्त,साज़िशें पढ़ना सीख गया


तुम्हें क्या क्या दूं मेरे अज़ीज,मेरे उस्ताद मेरे साये

तुम्हारे एहसान तमाम हैं,इन्हें लौटाना नहीं चाहता


आँधियों का शौक़ हैं ज़िद है,चिराग़ों को बुझाया जाए

चिराग जिद्दी है चलों,आँधियों को खौफ़ में लाया जाए


इसकी आदत है अदा है,चिराग़ बुझाने की

हमारी ज़िद है हर ओर,रोशनी लुटाने की


जब मौसम वक़्त इंसानी नस्ल,सब कुछ ख़िलाफ़ हो

तब हौसला अफजाई ख़ुद की,ख़ुद करना सीख लो


अपने हिस्से की जंग,हमें लड़नी ही होगी जरूर

जंग के मैदान से तो बस,कायर डरा करते हैं


मैदान देखकर जंगबाज़,मैदां नहीं छोड़ा करते

जिन्हें यकीं ख़ुद पर है,वे बढ़कर नहीं मुकरते


कारवाँ अपने आप,बनता जाएगा ग़र तुम चलोगे

किसी ग़ैर के सहारे,समंदर,नहीं तैरा करते


गले लगाओ उन्हें जो,खंजर छुपाके साथ लाए हैं

यही तो उस्ताद हैं जो सामने से,फूल हाथ लाए हैं


तुम्हारा सफ़र है तुम्हें ही,तय करना है इसे

राह में पत्थरों ठोकरों,कांटों से यारी कर लो


हुजूम भी बहुत पास भी बहुत,लेकिन साथ कितने चलो चलें पता करें,हक़ीक़त में साथ साथ हाथ कितने


लोग ही लोग और लोगों में,फिर भी अकेला आदमी

ये मंजर क्या है,आदमी के बीच भी क्यूँ है अकेला आदमी


सब अपनी अपनी राह पर हैं,मुसाफिर की तरह

हम अपना रास्ता क्यों बदलें,उन्हें आता देखकर


देखो देखो तो ज़रा हर ओर,आदमी नज़र आते हैं

वाक़ई इनमें कितने ठीक से,आदमी नज़र आते हैं


कौन कहता है मंज़िलें,पाना आसान नहीं

जो जिद्दी हैं सजग हैं,उन्हें मुकां मिलते जरूर हैं


वे करते हैं ख़ुराफातें,जालसाज़ियाँ करने दो

तुम अपना काम होशोहवास से,करते रहना


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

०९.११.२०२२ ११.५८ पूर्वाह्न(२३४)



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