चलो चलना सीख लो !!
आप में भी खूबियां हैं,आप में भी ख़ासियत।
स्वयं चलना सीख लो,कारवाँ बन जाएगा।
दरिया को पता है,उसमें ख़ासियत क्या है।
रास्ता बन जाएगा,वह जिधर से चल पड़ेगी।
ज़रूरी नहीं कि तुम,उन्हें समझ आओ।
इंसान हैं वे भी,ख़ुदा तो हो नहीं सकते।
सीखो और तवज्जोह दो,हर किसी को।
क्या पता कब कौन,चलना सिखा जाए।
आदमी ही जब,आदमी को गिराता है।
उस वक़्त से वह ख़ुद,गिरता चला जाता है।
उन्हें तेरे बढ़ते क़दम,रास क्यों आएंगे।
जिन्हें बस अर्दली,रखने का शौक़ हो।
एहसान बहुत है,आँधियों के मेरे ऊपर।
खड़े रहने का हुनर,सब इनसे पा गया।
धोखा फ़रेब,और जालसाज़ियों का खेल।
ये सब तोहफ़े हैं,क़बूल करना सीख लो।
सलाम सबको,जो दिल से मिलें या ना मिलें।
आप सब उस्ताद हैं,आपको सज़दा मेरा।
दोस्ती करो खूब करो,लेकिन परख कर।
धोखा,दग़ा नज़दीक से,अधिक मिलता है।
उन्हें मत बताना,अपने बुलंद इरादे कभी।
जिनकी ख़ुद कोई,अपनी ख़ासियत न हो।
दूरियाँ उनसे ज़रूर रखना,जो आदमी न हों।
फ़क़त दिखने से,कोई आदमी नहीं होता।
ग़र दिखा दे आईना,खूबियाँ गुस्ताखियां।
हम यक़ीनन आईने से,दुश्मनी कर जाएगें।
चलो करें फ़ैसला,चलने का दम अपने।
कारवाँ बन जाएगा,ग़र आप मे हो हौसला।
तोहफ़ा मुख़ालिफ़त का,जब जब हमें मिला।
शुक्रिया साहेब,हमें चलना सिखा दिया।
राह में जो भी मिले,वे सबके सब ठीक थे।
परख हमसे हो न पायी,ये कमीं अपनी रही।
हम तो हवा हैं,बेख़ौफ़ राहों से गुजरते हैं।
गले हम शूल के और फूल के,समभाव लगते हैं।
चमन है जिंदगी,हर तरह के फूल यहाँ मिल जायेंगे।
कुछ बहुत बेहतर खिलेंगे,कुछ स्वयं मुर्झाएँगे।
हमने जिसे अपने,दिल-ओ-जान से चाहा।
वह छिटक के दूर जा बैठा,रंज होना लाज़िमी है।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
१५.११.२०२२ ०३.०८ अपराह्न(२३७)