कविता-अपनी भी जय,उनकी भी जय।


कविता

अपनी भी जय,

उनकी भी जय।।


जो मिला हमें उसकी भी जय,

जो नहीं मिला उसकी भी जय।

समभाव रहो और सजग रहो,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


दृढ़ इच्छाशक्ति हो अस्त्र तेरा,

स्वयं का विवेक हो शस्त्र तेरा।

चल मार्ग सजग होकर निर्भय,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


होते जो धीर वीर जग में,

होते न सुप्त किंचित मग में।

उनकी अपनी धुन अपनी लय,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


समभाव रहे स्वयं में जो नर,

जो जीत गए स्वयं के भय पर।

जिनका ना रुका रथ देख प्रलय,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


कापुरुष कदम को रोकेंगे,

आ आ मिल मिल कर टोकेंगे।

देगें बहुभाँति क्लेश और भय,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


जो निंदक हैं उनकी महिमा,

पा जाता कमतर भी सब यहाँ।

इनकी मिलकर बोलो सब जय,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


चलते रहना सच सच कहना,

अपने भय से बच बच रहना।

ये मन्त्र सिद्ध तब जय निश्चय,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


साहस शक्ति और कर्म शील,

पा जाते सब कुछ नर सुशील।

जो चाहते जग हित मंगलमय,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


बस एक बार तो कर प्रयाण,

तूणीर देखि कितने हैं बाण।

तू छोड़ तीर कर लक्ष्य फतह,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


तेरा भी हो जग में किस्सा,

हो पन्नों पर कुछ कुछ हिस्सा।

बंधन करि खंड खंड तजि भय,

अपनी भी जय उनकी भी जय।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२१.११.२०२२ १२.०१ पूर्वाह्म(२४०)







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