शेर-दूरियाँ बेहतर !!

 
शेरो-शायरी

दूरियाँ बेहतर !!


क्यों आज के दोस्त,रिश्तेदार और खैरख्वाह।

जब वक़्त ख़िलाफ़ हो,तब नज़र आते हैं कम।


दोस्ती भी सियासी,होती जा रही है अब।

सियासत तो ठीक है,मगर दोस्ती में नहीं।


ज्यादा मीठा,और मीठे बोलों की कशिश।

होशियार रहो इनसे,बदलता ज़माना है।


गले लगें तब ही जब,दिल पाक-साफ़ हो

दिल अगर पाक-साफ़ नहीं,तो दूरियाँ बेहतर।


आजकल आदमी कम ही मिलेंगे,तलाशोगे अगर।

क़माल का दौर है,आदमी नहीं मिलता।


तेरा इतना नशा,इतना ग़ुरूर ठीक नहीं।

रुख़्सती अपने कंधों पर,किसी की नहीं होती।


जिसकी ज़िद हो,तूफां को हराने की।

उसे कौन रोक पाएगा पाया है,फ़तह पाने से।


जो शख़्स आंधियों तूफानों के,बीच खड़ा होना सीख गया।

सच मानिए वक़्त के साथ चलने का,हुनर सीख गया।


घट रही है उम्र रोज़ रोज़,पल पल मेरे दोस्तो।

और हम समझ बैठे हैं,हम तो बड़े होते हैं। 


ऐतबार करो ज़रूर,मगर ज़रा सँभल के।

हवा कहती है दग़ाबाज़,कहीं पास न हों।


नीम अच्छा है बेशक़ कड़वा है,पर फायदे से भरा।

उसके साए में कीड़े,पतंगें नहीं टिकते।


अपनों में जो सच बोल पाए,आंख से आंख मिला।

यही खैरख्वाह है असली,इसे संभाल के रखना।


तेरी कुर्सी है तो हैसियत है,सच मान मेरे अज़ीज।

इंसा को कौन गले लगाता है,इस दौरे जहाँ।


है ख़ास हमराही तुम्हारा,हौसला अपना।

पाओगे इसके बदौलत,सब जहाँ में तुम।


उम्मीद उनसे नहीं,करना मेरे अज़ीज।

जो आदमी से हैं,लेकिन आदमी नहीं।


तेरी बरक़त तारीफ़ की,हवा जिन्हें चुभे।

होशियार रहो उनसे,कहीं खंजर न हाथ हो।


उनसे ज़रा बचके रहो,नजदीकियां घटाओ।

सामने कुछ और,पीछे कुछ और नज़र आते हैं।


मुक़द्दर का सिकन्दर,हर कोई नहीं होता।

चलों बदल दें मुक़द्दर,कुछ ज़िद कर लें।


ख़ैरियत कोई पूछे,ना पूछे मलाल क्यों ?

है आजकल तरक्की देखकर,गले लगने का चलन।


वह रब है जिसकी रहनुमाई से,चलता है जहाँ।

वही रहबर,उसी की रहबरी मिलती रहे।


जो ख़ुद को जान गया,वह जीत गया जाग गया।

ख़ुद में ही ख़ुदा है,बस परखना तुम्हें होगा।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२३.११.२०२२ ०४.१५अपराह्न(२४१)

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