✍️संघर्षों से नाता✍️
संघर्षों का आदी है जो संघर्षों में पला बढ़ा,
संघर्षों से जिसका नाता संघर्षों में हुआ बड़ा।
उसका पथ निश्चित उसको उसके पथ तक ले जाएगा,
सूर्य सा होगा महिमामंडन सकल जगत गुण गाएगा।
जीवन का पथ कहता प्यारे सदा रहो गतिमान,
विजय छिपी है संघर्षों में चलता चल बलवान।
रुक मत जाना देख चाल के विकट थपेड़े,
चल आगे बढ़ता चल लेकर स्वप्न सुनहरे।
भरा रहे मग कांटों से या छुद्र मानवीय चालों से,
धोखा छल से या जलती मग में धूं धूं ज्वालों से।
लेशमात्र भी तुम अपना धीरज मत खोना,
संघर्षों के बाद विजय का मिले बिछौना।
जितना तपता आग मध्य में सोना,
उतना होता अधिक तेजमय रूप सलोना।
गर्म हथौड़े की चोटों को लोहा सहता,
झेल समय के दंड चला चल लोहा कहता।
चोटें खाकर तप भट्टी में लेता हूँ आकार,
लड़ता रहता रोज आग से नहीं मानता हार।
तुम भी अपने को परखो कुछ चलके देखो,
है भी कुछ यहाँ शेष जाँच के स्वयं को देखो।
मिट्टी जब जब कुम्भकार के हाथों पिटती,
अद्भुत अनुपम दिव्य रूप को लिए उभरती।
शिक्षक की जो डांट झेलता हंसते हंसते,
आगे फिर बहुमूल्य इसी शिक्षा से मिलते।
सीमा पर सैनिक जब भीषण मौसम सहता,
तब सरहद के अंदर मानव सुखमय रहता।
निशि वासर तैनात सिपाही गस्त लगाता,
खुद जगता वह रात रात पर तुम्हें सुलाता।
संघर्षों से है सबका ही गहरा नाता,
किसी को मिलता शीघ्र देर से कोई पाता।
तुम मत भय खाना मानव संघर्षों को लखि,
चलते रहना मार्ग अडिग पग पग धीरज रखि।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०५.११.२०२२ १२.३१ पूर्वाह्न(२३२)