शेरो-शायरी✍️नुमाइश✍️

   
शेरो-शायरी

✍️ नुमाइश ✍️


यहां सब कुछ खुला रक्खा है,जो चाहो उसे ले लो।

शराफ़त जेब भर ले लो,अदावत का ज़हर ले लो।


चलो हम छोड़ कर चलते हैं,तुमको इस चमन के बीच।

तुम फूलों सी महक ले लो,या चिड़ियों सी चहक ले लो।


तुम्हारी सोच पर छोड़ा गया,क्या क्या यहाँ लोगे।

प्यार की रोशनी लोगे,या कोरा कारबां लोगे।


फ़लक पर जगमग सितारे,भोर तक नहीं रहते।

जिंदगी में सदा दिन एक से,हर दम नहीं रहते।


डर डर के जिओगे तो,यूँ हीं ही मर जाओगे।

जो जिंदा हैं सदाक़त से,वे बेदम नहीं रहते।


वक़्त है साहेब,कब किसको क्या मुकां दे दे।

कभी इज्जत कभी जिल्लत,या आसमां दे दे। 


था उसको बहुत ग़म,ख़ुद का घर उजड़ने का।

वह मालिक है सुनो सबका,वह चाहे तो जहाँ दे दे।


सभी की होती है तय उम्र,यहाँ पर वक़्त ढ़लने की।

किसी को ठौर भर दे दे किसी को कौर भर दे दे।


अरे! तुम डूब मत जाना,चूर होकर हवा को देख।

वह सुलझा इक मदारी है,खुशी दे दे सितम दे दे।


ऐसे तो बनें हम कुछ,कि ऐसा काम कर जाएं।

ज़माना याद तो रक्खे,कि जिंदा नाम कर जाएं।


मंजिलें भी मिलेगीं,और शौहरत भी मिलेगी।

पत्थरों को गला कर हम,उन्हें गुलफ़ाम कर जाएं।


लोग कहते हैं कहने दो,ये उनकी अपनी आदत है।

यहाँ हम सब किराए पर,न ठहरी बादशाहत है।


अर्दली हैं सहारे हैं यहाँ सब,उसकी चौखट के।

यहां कुछ है कहाँ तेरा,ये रब की नियामत है।


ये जिन्दगी चंद पल की,इक नुमाइश है।

बहुत लंबी देखिए,फिर भी ख़्वाहिश है !!


ख़बर भी नहीं,किस वक़्त शाम हो जाए।

मगर फिर भी ग़जब की आज़माइश है !!


जिंदगी खामख़्वाब,ख़्वाबों की दुनियां में फंसी देखी।

कभी रोता जहाँ देखा,कभी खुलकर हँसी देखी।


चलो चलते हैं खुश होकर,यहाँ हम सब सफ़र पर हैं।

मेरे ईश्वर मेरे मालिक,तेरी हर ख़ासियत देखी।


✍️सर्वाधिकार सुरक्षित✍️

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०६.११.२०२२ ०५.४५ पूर्वाह्न (२३३)






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