सुख़न..इशारे समझ आते हैं..


सुख़न
इशारे समझ आते हैं...

मेरी आदत नहीं हर बात पर,बस बोलते रहना।

इशारे समझ आते हैं,ज़रूरी है नहीं कहना।


लफ्ज़ कुछ भी नहीं बोला,सहन करता रहा यूँ हीं।

हवा का रुख समझ आया,इशारा भी समझ आया।


अगर हो प्यार आंखों में,समझ आना ज़रूरी है।

ख़बर रखना ज़रूरी है,नज़र आना ज़रूरी है।


कभी मीठे कभी खट्टे,इन्हीं से बनते हैं रिश्ते।

मगर कड़बे विचारों से,दरक जाते बने रिश्ते।


उसे हम माफ़ कर आए,भुला आए गिले शिकवे।

मगर वह ना समझ पाया,नज़र आए गिले शिकवे।


हवा का रूख़ भी कहता है,जमाने की कहानी को।

हमारे कारनामों से बनी,हर इक कहानी को।


उसे कैसे पता होगा,ख़ता वह भी किये बैठा।

किसी का दिल दुखा बैठा,किसी का दिल लिए बैठा।


मुझे दिल के झरोखे से,नज़र आता है सुन सब कुछ।

मगर तू समझ बैठा था,नज़र आता नहीं है कुछ।


शिक़ायत थी अगर मुझ से,तो आके बात कर लेता।

तेरा खत भी नहीं आया, तू चल कर भी नहीं आया।


ख़्वाबों में हवाओं में,रहा तू हर तरफ काबिज।

लहू का कतरा जो ठहरा,धड़कनों में नज़र आया।


मुझे ऐतबार है तुझ पर,आज भी सुनो पहले सा।

ये रिश्ते मर नही सकते,तू आया या नही आया।


आखिरी वक़्त हम आए,तो आना क्या हुआ आना।

यह रिश्ता देर में जाना,तो जाना भी क्या जाना।


तेरे सब राज़ हैं मालूम,तेरे सब पैंतरे मालूम।

तेरे सब कारनामों की,कहानी भी हमें मालूम।


दूरियाँ बेशक हों घर की,मगर दिल की नही रखना।

अगर दिल में रहें दूरी,तो रिश्ते फिर नहीं रखना।


चलो हम करते हैं कोशिश,ग़लतफ़हमी दफ़न कर लें।

चलो फिर दोस्ती कर लें,और फिर तय सफर कर लें।


हमें ये याद रखना है,कि रिश्ते इक इशारा हैं।

ये तेरा भी सहारा हैं,ये मेरा भी सहारा हैं।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०१.१२.२०२२ ०५.०५अपराह्न(२४३)









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