छुपी शक्ति पहचान !!
जो नर मन में रहे सशंकित,
उनकी हार सुनिश्चित निश्चित।
जो जीते मन के भृम भय से,
उनकी होती विजय सुनिश्चित।
पथ पर जब चलता पथगामी,
पूर्व विदित होता न मार्ग कुछ।
पग पग चलता डग डग भरता,
मिलते जाते मार्ग स्वतः सब।
करो प्रयाण शपथ ले डर मत,
करो स्वयं का निर्मित जय पथ।
देखो साहस और आत्मबल,
चल मतिधीर मार्ग पर निश्छल।
हुंकार भरो करके निनाद भय छोड़,
पाश तोड़ बेड़ियाँ तोड़ संशय मरोड़।
है शक्ति शेष या मात्र रहे हैं प्राण शेष,
जाँचो परखो क्या बचा शेष क्या है विशेष।
निर्भय होकर चलता चल पथ पर हर्षाकर,
तू पा जाएगा लक्ष्य जगत में यश पाकर।
भय के झंझावत में उलझे तो रुक जाओगे,
सामने भी होगा लक्ष्य मगर ना पा पाओगे।
जो धीर निडर हो सजग चले निज मार्ग,
स्वयं में रह कर जो मनुज चले पग साध।
वह मनुज विजय पाकर माने जग ने जाना,
वह पूज्य हुए विख्यात हुए सब जग माना।
जो हुए स्वयं में सिद्ध मनुज पाखंड रहित,
उसके संग संग आए वैभव सम्पदा सहित।
जो रिक्त रहे भयग्रस्त रहे वे अस्त हुए,
जिनकी गति नित गतिमान रही वे शक्त हुए।
जिनके अंदर पुरुषार्थ रहा परमार्थ रहा,
निश्छलता,मेधा,संस्कार सामर्थ्य रहा।
जो रुका झुका ना द्वंद देख आपत्ति काल,
वह श्रेष्ठ मनुज सानन्द रहा रणजीत रहा।
जिसने स्वयं को जाँचा,परखा,खोजा,जाना,
अपने अंदर की छुपी शक्ति को पहचाना।
जो जाग गया सब जान गया नर विज्ञ हुआ,
हो गया प्राप्त यश मान खूब वह दिव्य हुआ।
जिस जिस मानव ने स्वयं पर किया भरोसा,
हर वक्त रहा जो सजग ना स्वयं को कोसा।
जो नित पथ पर गतिशील रहा जय जयी हुआ,
जिसको स्वयं में सामर्थ्य दिखा वह विजयी हुआ।
जीवित रहते हैं वही मनुज जो काम किए,
अपनी वसुधा के हेतु न मग विश्राम किए।
वैसे तो करोड़ों मरे जिये गुम हुए यहीं पर,
थे फिर भी कुछ नरश्रेष्ठ लिखे वृत्तांत मही पर।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
०४.१२.२०२२ १२.१८अपराह्न(२४४)