शेर-ओ-सुख़न
उड़ परिंदे ज़रा
अपने पंखों की ताक़त,ज़रा देख ले
उड़ परिंदे ज़रा,अपनी दम देख ले
"पर" परख तो ज़रा,आज़मा तो ज़रा
चल हुनर देख ले,आसमाँ देख ले
आज बाज़ी तुझे,जीतनी है ज़रा
आँधियों को सबक़,कुछ सिखा दे ज़रा
हो कहानी भी तेरी,ज़माने में कुछ
बाज़ को मात दे,उड़ परिंदे ज़रा
जिसकी हिम्मत मरी,हौसले मर गए
क्या कहूँ दोस्तो,जीते जी मर गए
हो अगर हौसला,जीत की भूख भी
भूमि बंजर में,उगते दिखे रूख भी
पत्थरों पर पड़े,देखो गहरे निशाँ
हो लगन की अगन,पास होगा मुकाँ
अपनी अपनी जवानी,कहानी रही
कोई असली रही,कोई पानी रही
जिंदा कैसे कहूँ,जो जिए ही नहीं
जो दिखे भी नहीं,कुछ दिए ही नहीं
जिसने खोजा तलाशा,वह सब पा गया
अपना कद पा गया,अपना पद पा गया
है नहीं कोई मंज़िल,जो हो ना फ़तह
समझ जाओ बस,क्या है डर की वज़ह
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
१६.१२.२०२२ १०.४८अपराह्न(२४८)