कविता-कोरोना फिर आ गया !

 

कोरोना फिर आ गया !!


✍🏻 दोहे ✍🏻


लहर कहर का रूप है,जान सके तो जान।

पाछे मत फिर चीखना,समझ सोचि इंसान ।।


देखे होंगे दृश्य बहु,मिटते रिश्ते झारि।

कैसे तब पैकिंग हुए,देखो नयन उघारि।।


नम्बर तो नम्बर रहा,सब नम्बर का खेल।

कोरोना का शौक़ है,नम्बर नम्बर खेल।।


पत्नी भी छूती नहीं,नहीं छुए कोई मित्र।

कोरोना के खौफ़ से,बदलत सारा चित्र।।


जीवन भर करते रहे,लूट झूठ व्यापार।

कोरोना फिर आ गया,करने बंटाधार।।


सरकारों का काम है,कागज कागज खेल।

लोकडाउन डंडा सहित,यही दिखेगा मेल।।


श्मशानों का दृश्य ग़र,रक्खा हो कुछ याद।

सावधान रहना सकल,छोड़ो व्यर्थ विवाद।।


कोरोना फिर पा गया,घणी जवानी आज।

अब जाको सूझे नहीं,बुरा भला कुछ काज।


चीनी चींचीं कर रहे,भर रहे कब्रिस्तान।

अपने यहाँ भी आ गया,कोरोना शैतान।।


कलम हमारी आपको,समझाती हर बार।

सावधान रहना सभी,सबकी जय जयकार।।


✍🏻कविता ✍🏻


आया आया फिर कोरोना,

जागो जागो फिर ना रोना।

कोरोना का बढ़ता कुनबा,

सिर पर चढ़ता आता कुनबा।


सावधान जो रहोगे भाई,

बच पाओगे निश्चिंत भाई।

जो लापरवाही कर बैठे,

पछताओगे पल पल भाई।


भूल गए क्या पिछले दृश्य,

बने अछूत सकल अश्पृश्य।

जो कोई चंगुल में फंसता,

पैंकिग से शायद ही बचता।


देख चुके हो मिटते रिश्ते,

देख चुके हो घटते रिश्ते।

अब तो ये फिर से आ धमका,

देखो देखो फिर आ धमका।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२२.१२.२०२२ ०८.४८पूर्वाह्न (२४९)







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