वक़्त की ताक़त
आदमी "आदमी" को जब,परखना सीख जाता है
सँभलना सीख जाता है,वह बढ़ना सीख जाता है
तेरे अंदर जो बैठा है,वही उस्ताद है असली
जो इसको परख पाता है,वह चलना सीख जाता है
ग़जब का शौक़ है उनको,गिरगिटों की तरह रहना
वे माहिर हैं शिकारी हैं,सँभलकर है तुम्हें रहना
मिले धोखा वफ़ा कुछ भी,उन्हें तोहफ़े समझ के लो
ज़माना है गिरगिटों का,अकल से काम इनसे लो
तेरी ताक़त तेरे भीतर,सदाक़त लेके चलता चल
ज़माने की ख़बर रखना,इशारों को समझता चल
शराफ़त हो तेरी खूबी,रहे इंसानियत जिंदा
तू अपनी राह चलता चल,कदम दर कदम चलता चल
तू हारेगा तो बोलेंगे,तू जीतेगा तो बोलेंगे
बोलना काम हो जिनका,वे बोलेगें ही बोलेंगे
चलो एक बार अपने आपको,ख़ुद तौलकर देखें
ग़र जागे हैं तो बोलेंगे,निडर हो करके बोलेंगे
बहुत से लोग चेहरे पर,कई चेहरे लगाते हैं
छुपाते हैं ज़माने से,नज़र पर पड़ ही जाते हैं
दिखावे से छलावे से,बचेंगे कब तलक़ रिश्ते
दरक जाते हैं जल्दी से,छलावे से सजे रिश्ते
जिसे हो ग़लतफ़हमी ग़र,कि वह सबको झुका देगा
वह दौलत से झुका देगा, वह ताक़त से झुका देगा
ज़रा तुम समझ लो प्यारे,ज़माने वक़्त की ताकत
वह चाहे जब झुका देगा,गिरा देगा उठा देगा
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतंत्र लेखक
०९.१२.२०२२ ०८.४५ पूर्वाह्न(२४५)