कविता✍🏻पूछ पूछ स्वयं से !✍🏻

 

✍🏻कविता✍🏻

पूछ पूछ स्वयं से !


तोड़ फेंक भय की जंजीरें तोड़,

छोड़ छोड़ उर की सब पीरें छोड़। 

ढूंढ ढूंढ स्वयं को स्वयं में कुछ ढूंढ,

पूछ पूछ स्वयं से मानव कुछ पूछ।


शेष बचा क्या ? साहस बल भंडार,

शेष बचा क्या ? प्रेम धर्म व्यवहार !

बतलाओ क्या ? शेष बचा है कितना,

शेष बचा क्या ? निश्छलता मय प्यार !


बचा बचा क्या शेष,शेष का पता लगाओ,

देखो देखो दशा,दिशा को मत बिसराओ।

मानव हो मानव रहने की आदत रखना,

रहें शेष सब मूल्य,कर्म का पथ अपनाओ।


धन दौलत नाकाम काम भी ना आ पाते,

जब पड़ती है चोट छोड़ धन दौलत जाते।

आता है बस काम कर्म का खाता प्यारे,

जग में जीता वही मनुजता को उर धारे।


जागो जागो नींद मगन क्यों होते जाते,

हतप्रभ और भयातुर हो क्यों वक्त बिताते।

क्यों चुप हो लखि दृश्य गलत को मग में,

लुटे पिटे से मत रह जाना तुम फिर जग में।


अपनी अपनी शक्ति परखना निश्चित प्यारे,

पा जाओगे लक्ष्य न रहना तुम बस हारे।

मिला लक्ष्य आ गले धैर्यरत मार्ग चला जो,

हुआ सूर्य सम तेज तपा जो खूब तपा जो।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१२.०१.२०२३ ०१.३९अपराह्न(२५७)



















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