कविता
सुदूर आसमान नहीं..
जीवन में कुछ भी मिलना आसान नहीं,
फिर भी सुदूर आसमान नहीं…।
बस चाहिए छूने की जिद,होश दम,
मुट्ठी भर संघर्ष निर्भीकता कदम कदम।
चाहिए अन्तर्बल साहस थोथी शान नहीं,
फिर भी सुदूर आसमान नहीं…
चमकना है तो जलना होगा नित नित,
दिए के सदृश जगहित मानव के हित।
झेलने होगें दंश प्रहार हवा के झोंके,
चलता चल तू अथक मुसाफ़िर चाहे कोई रोके।
हार गया जो "स्वयं" स्वयं से उसका बचा निशान नहीं,
फिर भी सुदूर आसमान नहीं…
जितने तुम झेल पाओगे हथौड़े व्यंग्य,
कूट जाल के हथौड़े शब्द जाल के व्यंग्य।
खड़े होना सीख जाओगे अंधड़ के बीच,
चल बड़ा कदम खींच लकीर दीर्घ खींच।
श्वास तो थी लेकिन शेष कुछ जुबान नहीं,
फिर भी सुदूर आसमान नहीं….
जितना तपोगे उतने निखरोगे तुम,
आग मध्य स्वर्ण की तरह शनैशनैःनित।
संघर्ष तैयार करता रहा है सदा बलवान,
साहसी निर्भीक जीवित धीर वीर इंसान।
वह शेष कहां जिसका शेष गुणगान नहीं,
फिर भी सुदूर आसमान नहीं…
लक्ष्य का अंतिम चरण आते आते,
थक जाते हैं अधिकतर झुक जाते हैं।
रुकना थकना छीन लेगा स्वप्न सारे,
चलता चल अथक ना रुक ना रुक…
बिना चले पथ मिलना तो आसान नहीं,
फिर भी सुदूर आसमान नहीं…
जिनकी अपनी जिद चट्टान सी हो,
वह पा जाते है अपना लक्ष्य निश्चित।
मिलते तो हैं काँटे चुभते भी हैं पगों में,
रुकते नहीं वे जिनके बहता रक्त रगों में।
बिना लड़े ये युद्ध विजय आसान नहीं,
फिर भी सुदूर आसमान नहीं….
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार/शायर
१९.०१.२०२३ ०८.१८पूर्वाह्न (२६१)