लेख-चौहत्तरवाँ गणतंत्र दिवस और हम !





लेख

    चौहत्तरवां गणतंत्र दिवस

और हम !

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      इस बार का गणतंत्र दिवस कई सारी उपलब्धियों,विशेषताओं के साथ मनाया गया ये हम सबके लिए अपने आप में अनूठा,अभूतपूर्व पल था,जैसे कि प्रथम बार कर्तव्यपथ पर विभिन्न राज्योँ की मनमोहक आकर्षक झांकियों का दृश्य एवं भारतीय लोक संस्कृति,विविधताओं में एकता की अद्भुत छटा का संगम उर में नव ऊर्जा का संचार कर गया। सैन्यबलों,अर्द्ध सैन्यबलों,पुलिस की टुकड़ियों के साथ पहली बार अग्निपथ योजना  के अंतर्गत भर्ती हुए अग्निवीरों की टुकड़ी ने भी परेड में हिस्सा लिया।

महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मी जी ने परेड की सलामी ली एव उन्हें सर्वोच्च सम्मान देते हुए 21 स्वदेशी तोपों से सलामी दी गयी। भारतीय सामरिक शक्ति का प्रदर्शन आत्मनिर्भर भारत की इच्छाशक्ति का जीता जागता उदाहरण कर्तव्यपथ पर देखने को मिला,परेड में मिस्र की सैन्य टुकड़ी ने भी हिस्सा लिया। इंडिया गेट पर लगी देश की आन बान शान के लिए सदैव तत्पर रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम के परम विशिष्ट योद्धा नेता जी सुभाष चंद बोस जी की प्रतिमा भी प्रथम बार गणतंत्र दिवस की गवाह बनी।


    इस बार भारत की तरफ से मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी मुख्य अतिथि के रूप में आतिथ्य ग्रहण किये। इस बार का गणतंत्र दिवस एक और मायने में अनूठा,अद्भुत रहा,इसी दिन अर्थात 26 जनवरी 2023 को विधा,बुद्धि,ज्ञान,वाणी की अदिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती का आराधना,प्राकट्य दिवस भी था अर्थात बसंत पंचमी का पुनीत दिन इसी तिथि से बसंत ऋतु का प्रारंभ होता है।

हमारे देश में 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ इन 73 वर्षों के कालखंड में हमने अनेकों चुनौतियों पर पार पाते हुए लक्ष्यों,उपलब्धियों को छूते हुए नागरिक स्वतंत्रता एव नागरिक अधिकारों से सम्बंधित अनेकानेक उपलब्धियों को हासिल किया,लेकिन इसके बावजूद भी हम बेरोजगारी,महंगाई,स्वास्थ्य,शिक्षा के क्षेत्र में तय लक्ष्यों मानकों को छूने में अभी समर्थ नहीं हो पाए हैं।

    मंहगाई सुरसा के मुख सदृश रोजाना बढ़ती ही जा रही है,आम जनमानस घुट घुट कर जीने को विवश होता दिखता है,युवाओं में रोजगार न मिलने के कारण असंतोष साफ झलकता प्रतीत होता है,एक ओर किसान सरकार की नीतियों में व्याप्त खामियों के मद्देनजर आंदोलन के मार्ग पर दिखते रहते हैं अर्थात नाराज खड़े दिखते हैं। ये हमारे जैसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। ये पूर्णतः सच है कि हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं,लेकिन एक ओर भारत की लगभग अस्सी करोड़ आबादी सरकार द्वारा प्रदत्त अन्न से लाभान्वित है इसके अनेकों आशय निकाले जा सकते हैं। इतने वर्षों के बाद भी स्वास्थ्य क्षेत्र की स्थिति अभी भी आशानुरूप नहीं दिखती! रोजगार की भीषण समस्या के निदानार्थ सरकार को अधिक कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है, उन्हें चाहिए कि वे विभागों में रिक्त सभी पदों को भरने पर जोर दें साथ ही अन्य माध्यमों से रोजगार सृजित करते हुए द्रुतगति से निर्णय लें ताकि युवाओं के चेहरे पर परिलक्षित बेरोजगारी पर करारा प्रहार किया जा सके। साथ ही निजी क्षेत्रों में और अधिक रोजगार सृजन की आवश्यकता है मझोले छोटे लघु उधोगों को और अधिक सहयोग रियायतें देते हुए कर प्रावधानों को और सरल बनाना होगा इसकी अत्यधिक आवश्यकता है।

  

   संविधान द्वारा हमें कुछ गारंटी भी प्राप्त हुई हैं,आइए उन पर एक नजर डालते चलें भारतीय गणतंत्र के ७४वें वर्ष में प्रवेश के दौरान ये प्रश्न पूछना लाजिमी है कि हम बाकई आर्थिक असमानता दूर कर पाए अर्थात नहीं? बताते चलें अनुच्छेद 38(2)में वर्णित है कि राज्य विशेष रूप से आर्थिक असमानता दूर करने का प्रयास करेगा एव अनुच्छेद 39(सी) के अनुसार राज्य ऐसी नीतियाँ बनाएंगे जिससे धन का केंद्रीकरण रोका जा सके,लेकिन इसके उपरांत भी हमारे यहाँ सिर्फ पाँच छः प्रतिशत भारतीयों के पास ही देश की साठ प्रतिशत सम्पत्ति है,आर्थिक असमानता की ये खाई निरन्तर बढ़ती ही जा रही है।

     देश में बढ़ती बेरोजगारी दिन दूनी गति से बलात सामने खड़ी होती प्रतीत होती है। लेकिन हम इस पर अभी तक रोक लगा पाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं, ये हमारे लिए वेहद चिंता का विषय है। अनुच्छेद 41 में वर्णित है कि राज्य रोजगार एव शिक्षा को बढ़ाने सुरक्षित रखने में प्रभावी प्रावधानों को लागू करेगा लेकिन सच्चाई और कुछ कहती है सीएमआईई के बेरोजगारी डाटा के अनुसार भारत में बेरोजगारी दर दिसम्बर 2022 में बढ़कर 8.30 फीसदी पर जा ठिठकी है। जो पिछले सोलह माह में सर्वाधिक उच्च स्तर है,इसके अनुसार ग्रामीण क्षेत्र की तुलना में शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी अधिक बढ़ी है। शिक्षा के क्षेत्र से भी उम्मीद के अनुसार अभी तक कुछ कार्य नहीं हो सके हैं। हाँ ये जरूर है कुछ लोगों को उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा अवश्य मिल रही है। लेकिन सभी को समान शिक्षा मिल पाना अभी कोसों दूर है। हमें इन सभी चुनौतियों से पार पाना अति आवश्यक है,हमें विशेषतः शिक्षा,स्वास्थ्य,रोजगार,मंहगाई नियंत्रण पर अधिक तेजी से कार्य करने की आवश्यकता है।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार/शायर

२८.०१.२०२३ ०६.०२ अपराह्न(२६३वां)


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