भारतीय नारी/प्रेयसी द्वारा "प्रणय निवेदन" नायिका के मन के उद्गार आइए कविता के माध्यम से जानें
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✍️कविता✍️
🌷प्रणय निवेदन🌷
मेरे मन के भावों को,
तुम समझो तो फिर बोलूँ।।
ह्रदय पीर के मर्म परख लो,
तब अंतर् बंधन प्रिय खोलूँ।।
आओ प्रिय सन्निकट भाव से,
प्रीति सुगन्धित पुष्प सजोकर।।
कह दूँगी सब मर्म ह्रदय के,
बंधन मुक्त विरहन सी होकर।।
लेकिन तुम धरि रूप छद्म,
आना मत मेरे निकट प्रणयी।।
आशाओं के स्वप्न अनेकों,
क्षणिक न हों रिझवार कहीं।।
ह्रदय प्रेम से हो परिपूरित,
तब आओगे सुखद लगेगा।।
देह चाह लेकर आओगे,
तब न सुखद ये सुखद रहेगा।।
नारी हूँ जग श्रेष्ठ धरा की,
तप,संयम,बल,बुध्दि तेजमय।।
प्रणय निवेदन तब मानूँगी,
जब होगा विश्वास पूर्णतय।।
प्रेम ह्रदय का मिले मान युत,
ह्रदय ह्रदय से हो जब संयुत।।
हो सच्चा स्नेह प्रीति का उर में,
तब करना प्रवेश प्रेम युत घर में।।
आओगे तुम प्रेम सत्य का चंदन लेकर,
दूँगी अनुपम नेह प्रीति की छाया देकर।।
छद्म वेष धरकर आने का मत करना प्रयास,
होगी भारी हानि बढेगा ह्रदय पटल में त्रास।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
३०.०१.२०२३ ०९.०५पूर्वाह्न(२६४वां)