✍️मन के मन से✍️
अवध नाथ ने खाये थे,जूठे शबरी बेर।
वर्ण भेद मन में न था,देखउ नयन उघेर।।
राम नाम आधार है,जग का पालनहार।
राम राज की नीति से,होगा बस उद्धार।।
प्रभू आपके नाम का,होता नित्य प्रयोग।
सत्ता की खातिर करें,नित नूतन उपयोग।।
वाणी जहरीली हुई,नेत्र ज्योति कमजोर।
भूल न स्वयं की देखते,देखें सबकी ओर।।
राम आपके नाम पर,ढोंगी सब गुलजार।
भक्त आपके पिस रहे,पार करो करतार।।
अवधनाथ कुछ देखिए,नेताओं के ठाठ।
साथ साथ सब बैठकर,करते बंदर बाट।।
मंहगाई के दौर में,जनता पिसती पाट।
नेता ओढे मखमली,जनता ओढे टाट।।
मंहगाई सुरसा भई,नहीं चलत रुजगार।
पर्चा होते लीक नित,सो गए चौकीदार।।
राम नाम हिय में नहीं,कालनेमि से बोल।
भेजौ श्री हनुमान कूँ,फोड़न इनके ढ़ोल।।
वर्ण भेद का रंग प्रभु,चढ़ता रोज म रोज।
राजनीति की रीति नव,नई सियासी खोज।।
प्रभू आपके नाम पर,करते ये सब रार।
राज सिंहासन के लिए,करें रोज तकरार।।
आप आइए लौटकर,देखन स्वयं सरकार।
बढ़त विषमता दूरियाँ,नए सियासी वार।।
राम आपके नाम पर,हो रहे नित व्यापार।
प्रजा घुट घुट रह रही,मजे करत सरदार।।
भार मही पर बढ़ रहा,लूट झूठ छल शेष।
कटुता का माहौल सा,छद्म सियासी वेष।।
रामचरित मानस अगर,पढ़ लें नेता झारि।
सत्य वचन है जानिए,नहीं होगी तकरार।।
राजव्यवस्था राम की,जगत रही विख्यात।
वैर विषमता मिट गई,राम राज के साथ।।
शिव शंकर झा "शिव"
स्वतन्त्र लेखक
३१.०१.२०२३ १०.४५अपराह्न(२६५)