कविता✍️हम पथिक हैं✍️



🌷कविता🌷

✍️हम पथिक हैं✍️


हम सभी पथ के पथिक हैं,

मार्ग में हम चल रहे सब।।

मिल रहे सब खो रहे सब,

कुछ थके से कुछ अथक हैं।

हम सभी पथ के पथिक हैं..


वालपन अल्हड़ जवानी,

भर रहे डग आसमानी।।

है मगर सब बस कहानी,

नियति निर्मित सर्व पथ हैं। 

हम सभी पथ के पथिक हैं..


प्रेम करुणा मोह बन्धन,

धर्म धीरज नव प्रबंधन।।

वंश वंशज और पुरुजन,

ये सकल मन की उपज हैं।

हम सभी पथ के पथिक हैं..


भोर संझा फिर वही क्रम,

जिंदगी का नवल अनुक्रम।।

लोभ लालच के घने रथ,

चल रहे नित नित सतत हैं।

हम सभी पथ के पथिक हैं..


जाल मकड़ी हम फँसे जा,

देख स्वयं को खुद हँसे जा।।

क्या बना ये आदमी स्वयं,

कभी उन्नत कभी नत हैं।

हम सभी पथ के पथिक हैं..


बिछड़ना मिलना सँभलना,

मेल मेला सुखद सपना।।

अपना सा बस लग रहा सब,

मगर खुद से रार नित हैं।।

हम सभी पथ के पथिक हैं..


चलें हम निर्लिप्त होकर,

मनुजता दिल में संजोकर।।

धैर्य का धारण कवच कर,

मोह माया अभ्यगत हैं।

हम सभी पथ के पथिक हैं..


उठना गिरना नित्य चलना,

कर्म का पथ नव सृजनना।।

पथिक हैं हम ये विदित है,

किंतु फिर भी दिग्भ्रमित हैं।

हम सभी पथ के पथिक हैं..


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

०४.०२.२०२३ ११.५५ पूर्वाह्न(२६६)



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