अशआर-झुकने का हुनर

 

"अशआर"

झुकने का हुनर


हुनर है कमाल का,कुछ कुछ के पास में

झुकना है कब कहाँ,औऱ किसके सामने


जिनको हुनर ये आ गया,वे ख़ास हो गये

सिरमौर हो गये,वे पास हो गये


नुस्खा अचूक है,इस दौर का सुनो

कितना कहाँ झुकें,कैसे कहाँ झुकें


वैसे हुनर तो ठीक है,बस ध्यान ये रहे

घुटने के बल झुकें,या सिर के बल झुकें


ईमानदार हो,इंसान जो अगर

सौ बार फिर झुकें,हर बार फिर झुकें


✍️🌷🌷✍️

हम आप और वे,क्यों गुमशुदा से हैं

क्यों खुद से लापता,ख़ुद से ख़फ़ा से हैं


सच बोलने की ज़िद,रिश्ते ना तोड़ दे

कुछ कुछ छुपा के चल,रिश्तों के वास्ते


चेहरे की झाइयां,सब कुछ बयां करें

छुपता है आदमी,खुद अपने आप से


आओ चलें टटोलें,दिल को क़रीब से

कुछ नब्ज भी तलाशें,रिश्तों की दोस्तो


अंदर ही अंदर कैद हो,बैठा है आदमी

लगता है गुमशुदा सा,होने को आदमी


मिलने से डर रहा है,ना हाथ बढ़ रहे

जिंदा है फेसबुक पर,थोड़ा सा आदमी


रिश्ते हवा में उड़ रहे,उड़ते ही जा रहे

बेसुध नशे में चल रहा,इस दौर आदमी


नकली सी हैसियत है,फर्जी अता पता

खोया हुआ सा है,वह ख़ुद से लापता


मालूम कुछ नहीं,पर मानता नहीं

खुद अपनी खामियां,पहचानता नहीं


✍️🌷🌷✍️

झुकना अदब में ठीक है,पर देख कर झुको

कुछ जानकर झुको,पहचान कर झुको


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१०.०२.२०२३ ०९.१५पूर्वाह्न(२६९)









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