कविता-अन्न है विशेष!

 

कविता

अन्न है विशेष !


दावतों का शोर,

रोज रोज शोर।

लोग बाग मस्त,

दावतों में व्यस्त।


प्रश्न इक बड़ा,

सामने है खड़ा !

बफर का क्रेज,

क्या बढ़े इमेज ?


खड़े खड़े खात,

बुढ्ढे भाग जात।

माँग माँग खाएं,

फिर भी मुस्कराएं।


जूँठे जाँठे हाथ,

जूठन लगत जात।

चम्मचों पर नजर,

रखना मित्रवर।


थोड़ा बहुत खात,

बाकी फेंक जात।

प्रश्न इक बड़ा,

देखो वह खड़ा।


किसको दोष दें,

किसको छोड़ दें।

भारतीय विधान,

लुप्त ही से मान।


शर्म लिहाज नांय,

पढ़े लिखे कहांय।

लप्प झप्प झप्प,

हँसी मजाक गप्प।


धक्का धकियात,

धक धकात आत।

भोजन का मान,

लुप्तप्राय जान।


भल्ला टिक्की चाँट,

खाएं छाँट छाँट।

आधी पद्दी खाएं,

बाकी छोड़ जाएं।


प्लेट प्लेट प्लेट,

भर लें पूरी प्लेट।

छोड़ आएं झट्ट,

डस्टबिन में पट्ट।


शर्म! शर्म! शर्म! 

शेष कितनी शर्म ?

अन्न का अपमान,

मत करो सुजान।


बफर की डगर,

चल पड़े हो गर।

ध्यान ध्यान ध्यान,

रखना एक ध्यान।


छोड़ना ना शेष,

अन्न है विशेष।

अन्न भगवान,

मान मान मान।


लीजिए जी लीजिए,

पान जितना कीजिए।

छोड़ना ना शेष,

लेशमात्र शेष।


पाँति का विधान,

अत्यधिक महान।

मान और सम्मान,

सभ्यता की खान।


लौटो इस ओर,

सभ्यता की ओर।

देश की बयार,

सभ्यता से प्यार।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१४.०२.२०२३ १२.०५ पूर्वाह्न (२७१)






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