गज़ल-मौजूदा दौर में

 

गज़ल

मौजूदा दौर में

✍️✍️❤️✍️✍️

हम झाँक लें अगर,ग़र अपना गिरेबाँ

आ जाएगें नज़र,दाग़ों के सब निशाँ


आओ टटोल लें,रिश्तों की नब्ज़ को

क्या ठीक चल रही,मौजूदा दौर में


हम भी नशे में हैं,वे भी तो कम नहीं

खुलकर नशे में हैं,मौजूदा दौर में


ख़्वाहिश बनी रही,हम क़ामयाब हों

बस भागते रहे,मौजूदा दौर में


इक भूख सी रही,पा जाऊं आसमाँ

बढ़ती ये ज़िद रही,मौजूदा दौर में


है इक नशा अज़ीब,पाऊँ मैं शोहरतें

उलझा है आदमी,मौजूदा दौर में


खुशियां भी दूर हैं,अपने भी दूर हैं

नकली सा आदमी,मौजूदा दौर में


चेहरे के नूर उड़ रहे,देखो जी ग़ौर से

है खुद से खुद ख़फ़ा,मौजूदा दौर में


है कशमकश बढ़ी,कैसे गले मिलें

हैं पास मगर दूर,मौजूदा दौर में


उलझे रहे से हम,अपने ही जाल में

ख़ुद जाल बुन चुके,मौजूदा दौर में


खोया है बहुत कुछ,खुद से पूछिए

अपने हैं गुमशुदा,मौजूदा दौर में


आओ चलें कदम,उनके पास तक

शायद वे फिर मिलें,मौजूदा दौर में


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१५.०२.२०२३ ११.१८पूर्वाह्न(२७२)


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