दोहे-कुर्सी है गुनखान!

 

दोहे-कुर्सी है गुनखान !

सेल्फी लेने डोलते,आगे पीछे लोग।

ग़र पद मुक्तासन हुए,खो जाएंगे लोग।।


कुर्सी के सब मित्र हैं,कुर्सी उत्तम ज्ञान।

कुर्सी गए न बूझ है,कुर्सी का सनमान।।


भूल भुलैया हैं बहुत,मत जापै इतराय।

कुर्सी होने दे विदा,दृश्य आइ सब जाय।।


कोई पद जब धारता,दौड़ दौड़ नर आत।

फँस जाए जब जाँच में,एकहू पास न जात।


अफसर नेता और हम,फूलें ना अधिकाय।

कुर्सी आवन जावनी,हाल पट्ट करि जाय।।


चाचा जब विधायक बने,भए भतीजे जोर।

गयी विधायकी हाथ से,नहीं जोर का शोर।।


नेता भी सब जानता,मधुमक्खी से यार।

कुर्सी की खातिर करें,माशूका सा प्यार।।


शेष बचे हैं बहुत कम,जो सच में हों साथ।

बुरे वक्त में भी रखें,अपना सच्चा हाथ।।


धन्यवाद के पात्र हैं,चाटुकार सब झारि।

ये हैं सच्चे महापुरुष,नवजुग के अनुसार।।


कुर्सी को प्रणाम है,बदल दे सारे ढंग।

झाड़ू झाड़ू चाय सब,चलते जाते संग।।


कोटि कोटि वंदन करूँ,हे कुर्सी बलवान।

सच में मायावी रही,तू और तेरी शान।।


तेरी जा पर हो कृपा,बने वह खास महान।

अवगुण गुण हो जात हैं,कुर्सी है गुनखान।।


कुर्सी के सहारे पुजत,निपट लुटेरे लोग।

वाह वाह कुर्सी प्रिये,अजब गजब संयोग।।


है दर्शन अद्भुत सुनो,लेखक शिव कहि जाय।

कुर्सी आवन जावनी,समझ सोच चितलाय।।


कुर्सी ने छोड़ा जिन्हें,खो गए वे सब झारि।

कभी सियासी गगन में,उड़े जो पंख पसारि।।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१९.०२.२०२३ ११.२५पूर्वाह्न(२७३)











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