🌷अशआर🌷

 

🌷अशआर🌷

आपसी अदावतें क्यों किससे

बादशाहत तो नहीं उम्र भर के लिए


शिकायत नहीं अदावत नहीं किसी से

सबके सब क़िरदार हैं नाटक के दोस्तो


छुपकर गुनाह करो या चुपके से

उस नज़र के सामने पर्दा नहीं रहता


हिसाब सबका है उधर ये याद रहे

खताओं के लिफाफे सब रब के पास हैं


चाहिए शोहरतें दौलतें हर एक को

मगर मुक़द्दर की अपनी बादशाहत है


सिफारिशों का दौर सब यहीं पर है

उसके दर पर सिफ़ारिशें नहीं चलती


हर एक को चाहिए मुकाँ अपने लिए

मग़र मिलता नहीं यूँ ही कहीं ख़ैरात में


अपनी अपनी भूख है पाने की

कोई कम में खुश कोई खुश नहीं रहता


ज़िद रही ताउम्र जिसे पाने की

एक वक्त उसी को छोड़ना चाहा


देखते हैं ख़्वाब सब आसमाँ पा लूँ

शर्त ये है कदम जमीं को न छोड़ दें


तुम चाहोगे दबा दोगे हवाओं को

दबाने की कोशिशें बेकार जाएंगीं


जुल्म की टक्कर जब रहम से हो

यक़ीनन रहम जंग जीत जाता है दोस्तो


सुनो हारना मत उम्र जब तक रहे

फ़तह यूँ हीं नहीं मिलती तोहफ़े में दोस्तो


एतबार खुद पर और उस रब पर रहे

यक़ीनन मंजिलें कदमों पर आ झुकेगीं


दिल और दिमाग एक साथ नहीं रखना

दिल के दर्द दिमाग के पल्ले नहीं पड़ते


चाह भरपूर हो इंसानियत के लिए

बस नीयत चाहिए आदमियत के लिए


सब साफ साफ है आईने की तरह

छुपने की कोशिशें बेकार की तदबीर हैं


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतन्त्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

२६.०२.२०२३ १२.०१पूर्वाह्न(२७५)







Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

buttons=(Accept !) days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !