कविता
चलता चल निर्भीक।।
स्वयं के भय से लड़ना होगा,
स्वयं ही स्वयं से भिड़ना होगा।।
असमंजस का गला घोंट चल,
बढ़ा कदम कुंठा को रौंद चल।।
भय न मान तू देखि कठिन पथ,
चलता चल निर्भीक सतत पथ।।
स्वयं चलने से मार्ग मिलेगा,
स्वयं निर्मित सद्मार्ग मिलेगा।।
स्वयं से पलपल मिलना होगा,
चलचल स्वयं चल चलना होगा।।
थकना मत तू मनुज धीर मति,
चलता चल निर्भीक सतत पथ।।
पथ मिलना होगा तब निश्चिय,
यश पाकर पायेगा जय जय।।
लेकिन गति मति फेर न लेना,
क्षणिक मार्ग विश्राम न लेना।।
तब पा लेगा धीर मनुज पथ,
चलता चल निर्भीक सतत पथ।।
चल निर्भीक निरन्तर गतिमय,
छोड़ उपजते मन भृम संशय।।
देखि न क्या खोना है तुझको,
दृष्टि बदल पाना क्या तुझको।।
चलता चल निर्भीक दिवस रत,
चलता चल निर्भीक सतत पथ।।
जिसमें तपने का साहस हर पल हो,
हो भरभर स्वाभिमान ज्ञान का बल हो।।
उसे मिलेगा निश्चित पद गौरव सम्मान,
धीर वीर के सम्मुख झुक जाते भगवान।।
करो प्रयत्न सुयत्न मनुज नित,
चलता चल निर्भीक सतत पथ।।
चलता चल निर्भीक सतत पथ,
तब पा लेगा धीर मनुज पथ।।
चलता चल निर्भीक सतत पथ,
चलता चल……………..।।
शिव शंकर झा "शिव'
स्वतंत्र लेखक
व्यंग्यकार
शायर
११.०३.२०२३ ०४.०० पूर्वाह्न(२८१)