व्यंग्य-कुएँ चोरी हुए !

 

व्यंग्य

कुएँ चोरी हुए !


नगर के बीच से सहसा कुएँ चोरी हुए !

कुछ समय के बाद में तालाब भी चोरी हुए।

चल पड़ा फिर खेल चोरी का बड़े ही जोर से

देखते ही देखते वन बाग भी चोरी हुए।


हम भ्रष्टन के संग भ्रष्ट क्या? प्यारे सच में।

फाइल करती रही इशारे सारे सच में।

भूमाफिया नेतागण अफसर चक्र त्रिकोणी,

चलता रहता खेल इन्हीं के सहारे सच में।


मगर चोरी की खबर थाने न चौकीदार को,

फाइलों के खेल में माहिर किसी सरदार को।

किंतु मिलकर खेल होता रोज की ये बात है,

खबर लेकिन देर तक पहुंची न ये दरबार को।


देखते ही देखते होते गए चोरी कुएँ,

मगर किसकी हैसियत थी चोर को जाके छुए।

झुक गया सिस्टम कदम में बंडलों के वास्ते,

बाग पोखर कुएँ भैया सबके सब चोरी हुए।


नगर के सब कुएं चोरी हो रहे थे दोस्तो,

शहर के सब बाग चोरी हो रहे थे दोस्तो।

देशी हवा चोरी गई सब शहर से भी दोस्तो,

सत्यता ईमान चोरी हो रहे थे दोस्तो।


अट्टालिकाएं बन गयीं सीने पे इनके देख लो,

बृक्ष मुर्दा कर गए जल्लाद मिल के देख लो।

कुएँ को दमघोंट मारा साथ मिल के चोर ने,

रपट फिर भी हो न पाई थाने चौकी देख लो।


खेल रिश्वत का बड़ा रंगीन यारो यहाँ हुआ,

चोर चौकीदार मिल के कुआँ था चोरी हुआ।

खूब थी रंगीन महफ़िल और रिश्वत का नशा,

इस तरह से दोस्तो हर ओर कुछ चोरी हुआ।


इस बड़े महाखेल में अफसर बिका नेता बिका,

रपट में ना जाँच में आया न पाया कुछ लिखा।

लिखा बेशक है नहीं पर बात सच यह मान लो,

माफिया के खेल में अफसर बिका नेता बिका।


मगर है अब जाँच का सब खेल जारी,

जाँच के इस खेल का भी खेल भारी।

खरीद ये किसने लिये सब जाँच में है,

मगर उसको सब खबर जो जाँच में है।


सर्वाधिकार सुरक्षित

शिव शंकर झा "शिव"

स्वतंत्र लेखक

व्यंग्यकार

शायर

१२.०३.२०२३ ०९.०५पूर्वाह्न(२८२)





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